देवरिया। गोवर्धन पूजा दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला त्योहार है। लेकिन इस साल 2022 में सूर्य ग्रहण के कारण 27 सालों के बाद ऐसा हो रहा है जब गोवर्धन पूजा दीपावली के ठीक बाद नहीं मनाई जा रही है। इस बार 24 अक्टूबर को दीपावली मनाई गई और 26 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा की जाएगी।
गोवर्धन पर्वत को उठा कर श्रीकृष्ण ने की थी भक्तों की रक्षा
एक बार गोकुल में इंद्र ने बहुत तेज वर्षा की थी। मूसलाधार बारिश से बचने के लिए हाहाकार मच गया था। तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली में उठाकर पूरे गोकुल वासियों और पशुओं को सुरक्षित रखा था। इंद्र ने लगातार 7 दिनों तक तेज बारिश की थी और श्रकृष्ण ने सात दिनों तक पर्वत को अपनी एक ऊंगली में उठाए रखा था। जब इंद्र को श्रीकृष्ण की महिमा का आभाष हुआ तब उन्होंने बारिश रोकी और क्षमा मांगी। तब से ही गोवर्धन पूजा का विधान चला आ रहा है। यह पूजा श्री कृष्ण और गोवर्धन पर्वत के प्रति हमारी श्रद्धा व्यक्त करने का प्रतीक है।

गोबर से बनाई जाती है श्री कृष्ण की आकृति
हिंदू धर्म में गाय और गाय से मिलने वाले सभी पदार्थों को शुद्ध माना जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन भी गाय के गोबर से श्री कृष्ण की आकृति बनाई जाती है और पूरी विधि से पूजा की जाती है। उसके बाद शुद्ध रूप से बनाए गए पकवानों का भोग लगाया जाता है। इस भोग को छप्पन भोग कहा जाता है। इस दिन घर के गायों की भी पूजा की जाती है और उनके लिए भी विशेष भोजन बनाया जाता है।
अन्नकूट के नाम से भी मनाया जाता है
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन नए चावल से खीर, नए चावल के आटे से पूरियां बनाई जाती है और गाय को खिलाया जाता है। घर के सदस्य भी इसे ही प्रसाद के रूप में खाते हैं। कृष्ण मंदिरों में इस दिन प्रसाद के रूप में भंडारे का आयोजन किया जाता है।
छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा
छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा यादव समाज का विशेष त्योहार है। इस दिन गांव के गौठानों को विशेष रूप से सजाया जाता है और गोबर से बहुत बड़ा गोवर्धन बनाया जाता है। गोठान में शाम के समय सभी गांव वाले एकट्ठे होते हैं फिर गायों के झुंड को गोबर से बने गोवर्धन के ऊपर से गुजारा जाता है। बाद में सभी ग्रामीण इसी गोबर से एक दूसरे का तिलक करते हैं और दीपावली और गोवर्धन पूजा की शुभकामनाएं देते हैं। यादव समाज के लोग इस दिन पारंपरिक नृत्य भी करते हैं, जिसे राउत नाचा कहा जाता है।