देवरिया। महाराष्ट्र के छोटे से गांव मोहिते वडगांव के लोगों ने अनुशासन का ऐसा उदाहरण पेश किया है, जिसके बारे में हम और सोचते तो जरूर हैं लेकिन कर नहीं पाते। इस गांव में लोग रोजाना शाम 7 से 8:30 तक डेढ़ घंटे की डिजिटल फास्टिंग करते हैं। इन डेढ़ घंटों में मोबाइल और टीवी का इस्तेमाल गांव में कोई भी नहीं करता।
शाम के 7 बजते ही मंदिर में बजता है सायरन
इस गांव में शाम के 7 बजते ही एक सायरन बजता है, जिसके बाद गांव के सभी लोग मोबाइल, टीवी, लैपटॉप जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल बंद कर देते हैं और बच्चे पढ़ाई में लग जाते हैं। इसी दौरान गांव के कुछ बच्चे ग्रुप स्ट्डी भी करते हैं। डेढ़ घंटे बाद जैसे ही रात के साढ़े आठ बजते हैं सायरन फिर से बजाया जाता है इसके बाद जिसे जरूरत हो मोबाइल या टीवी चालू कर सकता है।
कैसे हुई डिजिटल डीटॉक्स की शुरूआत
मोहिते वडगांव के सरपंच ने कोरोना काल में देखा कि पढ़ाई के चलते बच्चे मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने लगे हैं और दिन भर घरों में लॉक होने के चलते माता-पिता टीवी का भी टीवी देखने का समय बढ़ा गया है। मोबाइल और टीवी की यह लत लॉकडाउन खुलने के बाद भी जारी रही। बच्चे स्कूल जा कर पढ़ाई करने से ज्यादा मोबाइल मे समय बिताना पसंद करने लगे थे। तब उन्होंने गांव में एक सभा बुलाई और सबके सामने रात के डेढ़ घंटे मोबाइल ना चलाने का प्रस्ताव रखा, जो सबको खासकर पढ़ाई में रुचि लेने वाले बच्चों को पसंद आया। तब से ही गांव में यह नियम सबके द्वारा माना जाने लगा।
गांव को स्वच्छता के लिए भी मिल चुका है पुरस्कार
मोहिते वडगांव को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गांव कहा जाता है। गांव को पहले ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तरफ से स्वच्छता के लिए पुरस्कार मिल चुका है। गांव की इस पहल की चर्चा पूरे देश में हो रही है। किसी बात पर पूरे गांव का एकमत होना अपने आप में बड़ी बात है। गांव के लिए बने इस नियम का पालन हो रहा है कि नहीं इसकी निगरानी के लिए भी हर वार्ड के लिए एक कमेटी बनाई गई है।
PM मोदी ने भी की थी डिजिटल फास्टिंग की अपील
27 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोर्ड के छात्र-छात्राओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए “परीक्षा पर चर्चा” नाम से बात की थी। जिसमें उन्होंने परीक्षा की तैयारी से जुड़ी कई बातें परीक्षार्थियों से की थी। उसी कार्यक्रम में उन्होने सभी स्टूडेंट्स से दिन के कुछ घंटे डिजिटल फास्टिंग करने की बात कही थी।
