देवरिया: प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए जहर के समान है। सरकार ने एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक भी लगा दी है । तमाम विकल्प भी मौजूद हैं लेकिन आज भी सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। कभी जानकारी न होने की वजह से तो कभी महंगे होने के कारण लोग विकल्पों को छोड़कर यही इस्तेमाल कर रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि कोई है, जो आपको नि:शुल्क प्लास्टिक का विकल्प दे रहा है, तो क्या यकीन करेंगे ? नहीं न, तो चलिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और मिलिए सुरेंद्र बैरागी से।
सुरेंद्र बैरागी मुफ्त में लोगों को कपड़े की थैली, डिस्पोजेबल बर्तनों के बदले स्टील के बर्तन और प्लास्टिक कप के बदले नारियल से बने री-यूजेबल कप और चम्मच बांट रहे हैं। इन सबके के पीछे उनका केवल एक ही उद्देश्य है पर्यावरण को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से बचाना।

पीएम के भाषण से ली प्रेरणा
सुरेंद्र बैरागी, एक निजी कंपनी में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से भाषण देते हुए जनता से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने की अपील की थी। इसके लिए कुछ सुझाव भी पीएम मोदी ने दिए थे। वहीं से सुरेंद्र को प्रेरणा मिली और उन्होंने न सिर्फ खुद सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का प्रण लिया बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करने की ठानी। उनका परिवार किसी भी रूप में सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने के लिए संकल्पित है। अगर उन्हें किसी सामाजिक कार्यक्रम में भोजन के लिए जाना होता है तो वो अपना बर्तन खुद लेकर चलते हैं और उसी में खाना खाते हैं, जिससे डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग ना करना पड़े।

कैसे हुई इस मुहिम की शुरुआत
सबसे पहले सुरेंद्र बैरागी ने प्लास्टिक की थैलियों के उपयोग को कम करने के लिए कुछ लोगों की सहायता से सेवा टोली बनाई और बाजार में जाकर लोगों से प्लास्टिक की थैलियों को उपयोग ना करने का आग्रह किया। प्लास्टिक थैलियों के उपयोग को रोकने के लिए उसका विकल्प भी होना जरूरी है, इसके लिए उन्होंने घर पर ही पुराने कपड़ों को धोकर उनसे थैलियां बनाईं। पहले सौ से डेढ़ सौ थैलियों से शुरुआत की और बाजार में जाकर विक्रेताओं को बांटी। साथ-साथ जिनके हाथ में उन्हें प्लास्टिक थैलियां नजर आती थीं, उनसे विनम्रता से आग्रह कर कपड़े की थैलियां देते जाते थे और आगे भी कपड़े की थैली ही उपयोग करने का आग्रह भी करते थे।

स्कूली बच्चों को भी दी सीख
बच्चे देश का भविष्य होते हैं, अगर उन्हें भी इस मुहिम में शामिल कर लिया जाए तो भविष्य भी सुरक्षित हो जाएगा। ऐसा ही कुछ सोचते हुए सुरेंद्र बैरागी ने स्कूल से छूटने के बाद खाली टाइम में बच्चों को बुलाया और उन्हें पेपर से पैकेट बनाना सिखाया। 20 रुपए किलो के रद्दी पेपर से तैयार पैकेट्स को उन्होंने 40 रुपए में बेचा और जो मुनाफा हुआ, उसे बच्चों में बांट दिया।

नारियल के खोल से तैयार किया कप और चम्मच
कपड़े और पेपर बैग के बाद सबसे बड़ी चिंता सुरेंद्र बैरागी को चाय के ठेले, आइसक्रीम के कप और चम्मच की थी। इसका उन्हें जबरदस्त तोड़ सूझा। उन्होंने नारियल की कवर से चाय और आइस्क्रीम के कप के साथ-साथ चम्मच भी बना डाला। ये कप और चम्मच री-यूजेबल हैं और पर्यावरण को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाते। सुरेंद्र बैरागी जी चाहते हैं कि सरकार इसे हस्त शिल्प के माध्यम से बढ़ावा दे, जिससे लोगों को रोजगार भी मिले और प्लास्टिक कप-चम्मच का विकल्प भी मिल जाए।

बर्तन बैंक से घटा डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग
सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को बढ़ाने में दूसरे नंबर पर पर डिस्पोजेबल बर्तन हैं इसलिए इसका भी कोई दूसरा ऑप्शन होना जरूरी था। इसके लिए बैरागी ने बर्तन बैंक की शुरूआत की। सुरेंद्र बताते हैं कि उनकी मां ने बर्तन बैंक की शुरुआत की और अपने पेंशन के पैसों से 50 लोगों के लिए बर्तन खरीदकर दिए। इसके बाद इनकी सेवा टोली ने लोगों से आग्रह किया कि किसी भी सामूहिक भोज के कार्यक्रम में वो डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग ना करके बर्तन बैंक से नि:शुल्क बर्तन लें और उपयोग हो जाने पर लौटा दें। धीरे-धीरे लोगों को इसकी जानकारी होने लगी और वो डिस्पोजेबल बर्तनों की जगह बर्तन बैंक के बर्तनों का इस्तेमाल करने लगे।

कई शादियों में दिए बर्तन
बर्तन बैंक से खुश होकर और प्रेरणा लेकर लोगों ने भी बर्तन उपयोग करने के बाद मदद करना शुरू किया। किसी ने ग्लास दिया, किसी ने थाली और इस तरह 50 लोगों के बर्तनों से शुरू हुए बैंक में आज 500 लोगों के बर्तन जमा हो गए हैं। इस शादी के सीजन में उन्होंने 60 परिवारों को ये बर्तन दिए हैं और संकल्प पत्र भरवाया है। इस तरीके से 80 हजार डिस्पोडेबल बर्तन के यूज को रोका जा सका है।

निगम से लेकर सीएम तक ने ली प्रेरणा
बर्तन बैंक की सफलता को देखते हुए रायपुर नगर निगम ने कुछ वार्डों में बर्तन बैंक की शुरूआत की है लेकिन कुछ शुल्क भी निर्धारित है। सुरेंद्र बैरागी चाहते हैं कि नगर निगम इस सेवा को मुफ्त करे, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ ले सकें। इसके साथ ही सीएम भूपेश बघेल ने भी प्रदेश में 500 स्थानों पर बर्तन बैंक खोलने का फैसला लिया है।

कोरोना काल में भी की जनसेवा
कोरोना काल में भी सुरेंद्र बैरागी जनसेवा की भावना से काम करते रहे, उनके हाथ नहीं रुके। महामारी के वक्त उन्होंने पत्नी के साथ मिलकर घर पर मास्क बनाकर लोगों में बांटा था। इस तरह पर्यावरण को बचाने के लिए सुरेंद्र बैरागी जी ने सराहनीय कदम उठाया है। मिट्टी के छोटे-छोटे गोले बनाकर ट्रेन, बस, बाइक आदी से सफर कर रहे लोगों में बांटा और उन्हे रास्ते में फेंकने को कहा, जिससे बारिश का पानी पड़ने से मिट्टी गल जाए और उसके अंदर छिपे बीज से पौधा बन जाए।

उनके सभी कामों में उनकी धर्मपत्नी आशा बैरागी और उनकी पूरी सेवा टोली ने उनका साथ देती है। अगर हम भी पर्यावरण के प्रति जागरूक होते हुए छोटे-छोटे कदम उठाएं और अपने हिस्से का काम करें को अपनी धरती को बचाने में सहयोग दे सकते हैं।