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अखंड सुहाग के लिए तीजा का व्रत रखती हैं महिलाएं, छत्तीसगढ़ में मायके में व्रत करने की अनूठी परंपरा

देवरिया: देश में मनाए जाने वाले बहुत से लोकपर्वों में तीजा भी एक प्रमुख पर्व है। तीजा, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनाया जाता है इसलिए स्थानीय बोली में इसे तीजा कहते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति के स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं। व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है और रात्रि जागरण भी किया जाता है। वैसे तो अलग-अलग हिंदू महीने की तीज को अलग-अलग समुदायों में मनाया जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ में मनाई जाने वाली हरतालिका तीज की अपनी अलग ही परंपरा है, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

हरतालिका तीज का अर्थ
हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बना है हर अर्थात हरण और तालिका अर्थात सहेली। इसी दिन मां पार्वती को उनकी सहेली उनके पिता के घर से हर कर जंगल ले गई थी इसलिए इसे हरतालिका कहा जाता है और उस दिन तृतिया तिथि होने के कारण तीज कहा जाता है। हरतालिका व्रत कथा में इसके पीछे की कहानी विस्तार से बताई गई है।

छग में मायके में व्रत करने की है परंपरा
हर प्रकार की तीज का महिलओं के लिए बहुत महत्व होता है। महिलाएं व्रत करने के साथ-साथ सोलह श्रृंगार करती हैं और पूरे दिन शिव-पार्वती की आराधना करती हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में रखे जाने वाले हरतालिका तीज महिलाओं के लिए और भी विशेष इसलिए हो जाता है क्योकि यहां पर तीज का व्रत मायके में रहकर रखने की परंपरा है। फिर चाहे वो कोई नवविवाहिता हो या बुजुर्ग महिला, तीज में अपने मायके जाती हैं। बुजुर्ग महिलाएं जिनके माता-पिता नहीं हों वो अपने भाई या भतीजों के घर जाती हैं। मायके में भी माता-पिता को अपनी बेटियों का, भाइयों को अपनी बहनों और भतीजे-भतीजियों को अपनी बुआ का इंतजार रहता है। तीज के पहले पड़ने वाले पोला से ही बेटियों का आना शुरू हो जाता है। पुरानी परंपरा के अनुसार भाई या पिता बेटियों को तीजा के लिए लेने उनके ससुराल जाते हैं, लेने आए हुए भाई या पिता को यहां की बोली में ‘लेवाल’ कहा जाता है और तीज का व्रत रखने वाली महिलाओं को “तिजहारिन’। शादी के बाद जहां हर तीज त्योहार ससुराल में ही मनाना होता है, वैसे में छत्तीसगढ़ के इस रिवाज के चलते यहां की बेटियों को साल का एक त्योहार अपने मायके में मां-बाप के पास मनाने का अवसर मिलता है।

व्रत के पहले दिन खाया जाता है ‘करू भात’
तीज उपवास के पहले दिन “करु भात” यानी कड़वे चावल खाने की परंपरा है। इसके लिए मायके आई बेटियों को आसपास के रिश्तेदार या पड़ोसी अपने घर करु भात खाने का न्योता देते हैं। करु भात में करेले की सब्जी और भात खाया जाता है। इसके साथ और भी दूसरे व्यंजन भी रखे जा सकते हैं। करु भात यानी करेला खाने के पीछे एक कारण ये भी है कि करेला खाने से प्यास कम लगती है और अगले ही दिन तीज का निर्जला व्रत रहना है इसलिए एक दिन पहले करेला खाने की परंपरा बनाई गई है।

नवविवाहिता के पहले तीज का होता है विशेष महत्व
विवाहित स्त्री के लिए तीज का बहुत महत्व है क्योंकि ये व्रत वो अपने अखंड सुहाग के लिए रखती है। इसलिए जब किसी नवविवाहिता का शादी के बाद पहला तीज पड़ता है तो उसका महत्व और भी बढ़ा जाता है। छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुसार पहले तीज को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। तीज की पूजा में नवविवाहित सात छोटे पर्रे में 7 सुहाग का सामान, 7 प्रकार के पकवान भरकर मां पार्वती को अर्पित करती है फिर उसे 7 सुहागिनों को दान करती है। इसे पर्री भरने का रिवाज कहा जाता है।

तीज में मायके की साड़ी का होता है इंतजार
तीज में बेटियों को व्रत रखने पर मायके से उपहार में साड़ी मिलती है जिसके लिए हर महिला उत्साहित रहती है। किसी कारण से अगर बेटी मायके नहीं आ पाती तो भाई या पिता बेटी के ससुराल जाकर उसे तीज की साड़ी और श्रृंगार का सामान भेंट करके आता है। मायके की साड़ी पहनकर ही उपवास खोला जाता है।

बालू और मिट्टी से बने शिवलिंग और फुलेरा की होती है पूजा
तीज की पूजा करने के लिए बालू और मिट्टी को मिलाकर शिवलिंग बनाया जाता है और साथ में नंदी और पार्वती माता की मूर्ति भी बनाई जाती है। तीज की सुबह ही इन्हें स्थापित कर दिया जाता है और फूलों से इनका मंडप सजाया जाता है। मंडप के ऊपर फूलों को झूमर जैसा सजाते हैं, जिसे फुलेरा कहते हैं। रात भर फुलेरा के पास भजन-कीर्तन किया जाता है। सुबह होते ही नहा कर मायके की साड़ी पहनकर फिर पूजा की जाती है और फिर शिवलिंग और फुलेरा को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के बाद घर आकर फलाहार कर व्रत खोला जाता है। इस दिन महिलाएं एक दूसरे को फलाहार करने के लिए अपने-अपने घर न्योता देती हैं।

तीज में बनाए जाते हैं पारंपरिक पकवान
छत्तीसगढ़ के तीज और पोला के त्योहार में विशेष रूप से ठेठरी और खुरमी बनाए जाते हैं। तीज के अगले दिन सुबह इसका ही भोग लगाया जाता है। खुर्मी गेहूं के आटे और गुड़ या शक्कर को मिलाकर बनाए जाने वाला मीठा पकवान है और ठेठरी बेसन से बनाए जाने वाला नमकीन पकवान है।

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