देवरिया न्यूज़

: :

आजादी के 75 साल: वो नारे, जो बन गए स्वतंत्रता की निशानी, जिनके बिना नहीं पूरी हो सकती सियासत की कहानी

देवरिया: हम स्वतंत्रता के 75 साल का जश्न मना रहे हैं। आजादी के अमृत महोत्सव में हम 7 दशकों के अपने सफर के हर उस पड़ाव हो याद कर रहे हैं, जिसने इस मुल्क को हिम्मत दी और आज दुनिया के अग्रिम पंक्ति के देशों के बीच खड़ा कर दिया है। हमारी आजादी में जाने कितने बलिदानियों का बलिदान शामिल है। वतन के लिए कुर्बान हुए क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देते हुए आज हम उन नारों की चर्चा करेंगे जिन्होंने न सिर्फ भारत की स्वाधीनता में बड़ी भूमिका निभाई बल्कि सियासत की दिशा भी तय की।

इतिहास गवाह है कि नारों ने देश की दशा और राजनीति की दिशा बदलने में बड़ी भूमिका अदा की है। नारों का पुराना और दिलचस्प इतिहास रहा है। नारों ने स्वाधीनता की लड़ाई में देश को एकसूत्र में बांधा। राजनीति में नारों की ताकत से नेताओं का खेल बनता और बिगड़ता है। इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी तक नारों की बदौलत सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे और देश के प्रधानमंत्री बने।


इन नारों ने देश की रग-रग में भरा था जोश
‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘दिल्ली चलो’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’। ये सिर्फ नारे नहीं थे बल्कि वो बीज थे जो आजादी के दीवानों ने जन-जन के दिलों में बोए थे। कभी इन नारों ने अंग्रेजों की दासता के खिलाफ स्वाधीनता की तमन्ना जगाई, तो कभी नरमाई से लोगों के दिलों में देशप्रेम का राग भर दिया। भगत सिंह, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, राम प्रसाद बिस्मिल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, मोहम्मद अल्लामा इकबाल, महात्मा गांधी के दिए नारों ने हिन्दुस्तान की तस्वीर बदल दी। समाज को आवाज और राजनीति को दिशा दे दी। इन नारों ने आजादी की दीवानगी कुछ युवाओं और भारत के शहरी क्षेत्रों से निकालकर खेत-खलिहानों और किसानों तक पहुंचा दिया।

ये नारे ही थे, जिनकी तपिश ऐसी थी कि अंग्रेज उन पर पाबंदियां लगाने लगे थे। प्रभाव ऐसा था कि जेल भी हो जाती थी। दरअसल, गुलाम भारत की राजनीति की आवाज ये नारे ही थे। 1942 में गांधी जी के दिए हुए नारे ‘करो या मरो’ की परिणती भारत की स्वतंत्रता में हुई। तब हो या अब भारतीय गणतंत्र में चुनावी राजनीति के सबसे बड़े हथियार ये नारे ही हैं।

नेता का नाम भले भूल जाएं, नारे नहीं भूलते
क्या कोई नारा चुनाव में बंपर जीत दिला सकता है ? लोगों की आवाज बन सकता है ? लोगों को पसंद आ सकता है लेकिन जीत में नहीं बदल सकता है ? अगर आप ये सवाल पूछेंगे तो जवाब भारत की 75 साल की चुनावी यात्रा खुद-ब-खुद दे देगी। इलेक्शन को त्योहार की तरह मनाने वाले इस देश में नेता और नारों का चोली-दामन का साथ है। यहां लोग नेता का नाम भले भूल जाएं, नारे मुंहजबानी याद होते हैं।

आइए उन नारों की बात करते हैं, जिनके बिना भारतीय राजनीति की चर्चा करना बेमानी होगा। भारत में राजनीतिक नारों में से कई यादगार रहे हैं। जैसे कि ‘गरीबी हटाओ’, ‘इंडिया शायनिंग’, ‘जय जवान-जय किसान’, ‘अबकी बार, मोदी सरकार’। ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ तो आम लोगों की ज़ुबान पर ही चढ़ गया।

कोई नहीं भूल सकता ‘जय जवान, जय किसान
आजादी के बाद से अब तक की बात करें तो 1950 के दशक में पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया। हालांकि उसके बाद चीन से संबंध सुधरने की जगह और खराब होकर युद्ध तक पहुंच गए। वर्ष 1965 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध की वजह से देश में खाद्य पदार्थों का संकट आ गया, तब देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश का सबसे लोकप्रिय नारा ‘जय जवान-जय किसान’ दिया। ये नारा आज भी लोगों के दिल में बसा है। आज भी मनोबल बढ़ाता है। जवानों और किसानों के लिए लोगों के मन में सम्मान पैदा करता है।

‘वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज’
1962 में पूर्व पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू की विदेशनीति के ख़िलाफ़ न जनसंघ के वरिष्ठ नेता जगन्नाथराव जोशी ने ‘वाह रे नेहरू तेरी मौज, घर में हमला बाहर फौज’ का नारा दिया था। उस समय नेहरू प्रधानमंत्री थे। देश को चीन और पाकिस्तान से खतरा था। भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्र शांति-सेना में शामिल होकर शांतिरक्षा का काम कर रहे थे।

गूंज गया ‘गरीबी हटाओ’
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1971 के चुनाव प्रचार में दिया गया नारा ‘गरीबी हटाओ’ पूरे देश में गूंज गया। इस नारे ने इंदिरा गांधी को बड़ी जीत दिलवाई। चार साल बाद 1975 में आपातकाल लागू कर दिया गया। तब कांग्रेस नेता देव कांत बरुआ ने नारा दिया था, ‘इंदिरा भारत हैं और भारत इंदिरा है’। ये नारा उस ताकत को बताता था, जो उस वक्त इंदिरा के हाथ में थी।

‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ’ ने पलट दी बाज़ी
आपातकाल के विरोध में कई विपक्षी दलों ने जनता मोर्चा का गठन किया। मोर्चे ने ‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ’ और ‘संपूर्ण क्रांति’ जैसे नारों के साथ प्रचार किया और 1977 में एकतरफा जीत मिली। 1977 में जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में यह नारा दिया था। उस साल जनता पार्टी ने कांग्रेस को हराकर जीत हासिल की और इसमें इस नारे का बहुत बड़ा हाथ था।

किस नारे ने वीपी सिंह को बनाया था पीएम ?
1989 में वीपी सिंह पर दिा गया नारा ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ लोगों की जुबान पर चढ़ गया और वह प्रधानमंत्री बन गए।

वाजपेयी के दौर के इन नारों ने बनाई लोगों के दिल में जगह
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद विज्ञान और तकनीक के बढ़ते महत्व को देखते हुए ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ का नारा दिया। ये पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान-जय किसान’ जैसा ही था। बीजेपी 1996 में वाजपेयी की भ्रष्टाचार मुक्त छवि को लेकर बनाए गए नारों के साथ सत्ता में आई थी। चुनाव के दौरान ‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी’ नारा लोगों का फेवरेट हो गया।

उसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ‘इंडिया शाइनिंग’ जैसा चर्चित नारा दिया। यह नारा लोगों को तो बहुत पसंद आया लेकिन चुनाव न जीता पाया।

तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बैनर्जी के नारे ‘मां, माटी, मानुष’ नारे के साथ सफल प्रचार किया। दशकों तक कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता के बाद लोगों को इस प्रचार में ताजगी नजर आई और उन्होंने ममता को चुना।

‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ ने लौटाई सत्ता
साल 2004 में कांग्रेस ने नारा दिया ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’। ये नारा एनडीए के नारे इंडिया शायनिंग पर भारी पड़ा और यूपीए लगातार 10 साल सत्ता में रही।

2014 में छा गए बीजेपी के नारे, बदल गई ब्रांडिंग की सूरत
साल 2014 लोकप्रिय नारों का साल रहा। भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे को केंद्र में रखकर बेहद लोकप्रिय नारे ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ का नारा दिया। पीएम मोदी का दिया ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ नारा लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया। नतीजा ये हुआ कि एनडीए ने 2014 और 2019 के आम चुनावों में बंपर जीत हासिल की। विपक्ष, विपक्ष बने रहने के लिए जरूरी सीटें भी हासिल नहीं कर सका। कांग्रेस ने इसके जवाब में ‘हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की’ और ‘कट्टर सोच नहीं, युवा जोश’ जैसे नारे दिए। लेकिन ये नारे फ्लॉप रहे।

भाजपा के नारे ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे भी लोगों के बेहद लोकप्रिय हैं। वर्तमान की राजनीति में इन दोनों नारों ने कई राज्यों में बीजेपी को सत्ता पर काबिज किया है।

कुछ और नारों के बिना भारतीय राजनीति का इतिहास अधूरा रहेगा। इनमें हैं ‘भूरा बाल साफ करो’। यहां भूरा बाल का मतलब था- भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला। इसे कथित तौर पर लालू प्रसाद यादव ने दिया था। उत्तर प्रदेश की राजनीति में साल 1990 में सपा और बसपा के हाथ मिलाने पर ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय सिया राम’ नारा चर्चित हुआ। ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ और ‘हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं’ जैसे नारों के बूते बसपा सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही। इसके ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’, ‘रामलाल हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ जैसे नारों की लोकप्रियता सदैव अमर रहेगी।

साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा, सपा और कांग्रेस के दिए नारे लोकप्रिय हुए। जीत बीजेपी को मिली बाकी नारों के मीम बहुत बने। बीजेपी ने सोच ईमानदार, काम दमदार, फिर एक बार भाजपा सरकार का नारा दिया। यूपी+योगी = उपयोगी का नारा भी चर्चित हुआ लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी ‘साइकिल रखो नुमाइश में, बाबा ही रहेंगे बाइस में, फिर ट्राई करना सत्ताइस में’ ने। सपा ने ‘आ रहे हैं अखिलेश’ और ‘बाइस में बाइसकिल’ के जरिए वापसी की कोशिश की। वहीं कांग्रेस का नारा ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ लोकप्रिय तो हुआ लेकिन 403 सीटों में महज दो सीटें ही पार्टी को मिल पाईं।

सोशल मीडिया के दौर में नारों की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। युवाओं को लुभाते हैं, लोगों के दिल में जगह बनाते हैं, पसंद आए तो सरकार बनी नहीं तो सिर्फ टाइमलाइन पर ही छाते हैं। नारों का इतिहास देखकर ये तो कहा ही जा सकते हैं कि इनके अच्छे दिन कहीं नहीं जाने वाले हैं।

Leave a Reply

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *