देवरिया: सावन का महीना आते ही कितनी सारी यादें जेहन में ताजा हो जाती हैं। अगर आप नब्बे के दशक के भी हैं, तो भी सावन महीने की खुशियां आज भी याद कर आपके चेहरे पर मुस्कान आ जाती होगी। सावन की रिमझिम फुहार पड़ने से चारों तरफ हरियाली छा जाती है, ऐसा लगता है जैसे महीनों से सूखी पड़ी धरती ने हरे रंग से श्रृंगार कर लिया हो। पहले के समय में सिर्फ धरती ही नहीं सावन आते ही युवतियां और महिलाएं भी सावन में खूब साज-श्रृंगार किया करती थीं और झूले का मजा लिया करती थीं। आधुनिकता के दौर में कई पुरानी परंपराओं के साथ ये सब भी अब कम ही देखने को मिलता है। खासकर शहरी इलाकों में ये महीना अब केवल रेनी सीजन बन कर रह गया है।
सावन के झूलों की याद
पहले सावन आते ही हर गांव में पेड़ों पर झूले डाले जाते थे। महिलाओं और युवतियों की हंसी बारिश की फुहारों को और भिगो दिया करती थी। पुरुष काम करने चले जाया करते थे, ऐसे में महिलाएं अपने घर का काम निपटा कर झूले के पास इकट्ठा हुआ करती थीं और सावन के गीत के साथ झूले का आनंद लिया करती थीं। झूले से पेड़ की टहनियां भी ऐसे झूमती मानों वो भी सावन का मजा ले रही हों। अब वो टहनियां भी झूले बांधे जाने का इंतजार करती हैं।

हाथों में होती थी मेहंदी
सावन में मेहंदी लगाने का रिवाज पुराना है। महिलाएं शौक से सावन के महीने में अपने हाथों में मेहंदी सजाती थी। मेंहदी किसकी ज्यादा रचेगी, ये कॉम्पिटीशन भी होता। हरियाली तीज और राखी जैसे त्योहार तो जैसे मेंहदी लगाने का बहाना ही लेकर आते।

हरियाली और हरी चूड़ियां
हरे रंग को प्रेम, खुशी और सैभाग्य का प्रतीक माना जाता है। सावन में महिलाएं भी प्रकृति के साथ-साथ खुद भी हरे रंग की चूड़ियों और कपड़ों से श्रृंगार करती हैं। हरे रंग से श्रृंगार कर महिलाएं अपने सुहाग के सौभाग्य की कामना करती हैं। पहले सावन के महीने में चूड़ियों का बाजार लगा करता था। समय के साथ ना तो हरी चूड़ियों का बाजार दिखता है ना ही हरी चूड़ियों से भरी कलाई।

नववधू के मायके आने का रिवाज
पहले के समय में नववधू के शादी के बाद पड़ने वाले पहले सावन में मायके जाने का रिवाज था। मायके में मां, बहनें और सखियां भी झूला झूलने के लिए उनका इंतजार किया करती थी। कुछ इलाकों में अभी भी ये रिवाज निभाया जाता है।
अब भी सावन आता है, लेकिन समय के साथ सावन उत्सव भी आधुनिक हो गए हैं। अब झूले के आस-पास महिलाओं का जमावड़ा नहीं होता बल्की सावन थीम पर पार्टी रखी जाती है, हाथों से मेहंदी नहीं कूटी जाती, बल्की मेहंदी के रेडी कोन से हथेली सजाई जाती है, हरी चूड़ियों से भरी कलाइयां भी कम ही देखने को मिलती है.