मोहम्मद अल्वी लिखते हैं धूप ने गुजारिश की, एक बूंद बारिश की। जब तपती गर्मी हमें झुलसा देती है, तब हमारी आंखों में भी तो एक बूंद बारिश के सपने ही तो देखते हैं। उस बूंद में होती है मिट्टी की सोंधी महक, बचपन की कागज वाली नाव, स्कूल का रेनी डे, टीनएज की हलचल, मोहब्बत की खुशबू, किसान का इंतजार और न जाने कितने एहसास। बारिश सिर्फ पानी नहीं एहसास, याद, खुशहाली सब लाती है। बरसात के पानी में कभी बढ़ जाती हैं, तो कभी बह जाती हैं मिठास, तल्खियां। स्वाद, वो भी तो बारिश का बड़ा हिस्सा होता है। चूल्हे पर चढ़ी कढ़ाई में कभी मां के हाथ का हलवा होता है, कभी पापा के पनीर के पकौड़े, कभी दादी की अदरक वाली चाय चढ़ी होती है, तो कभी हमारी पसंद के समोसे।

बारिश के इन्हीं एहसासों से बांध कर रखती हैं कविताएं, कहानियां और शेर। कुछ चुनिंदा हम चुन कर लाए आपके लिए, पढ़िए।
दुष्यंत कुमार
दिन भर वर्षा हुई
कल न उजाला दिखा
अकेला रहा
तुम्हें ताकता अपलक
आती रही याद
इंद्रधनुषों की वे सतरंगी छवियां
खिंची रही जो
मानस-पट पर भरसक
अमीर खुसरो
आज बन बोलन लागे मोर
कोयल बोले डार-डार पर पपीहा मचाए शोर
आज बन बोलन लागे मोर
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर
आज बन बोलन लागे मोर
सुमित्रानंदन पंत
झम-झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरती बूंदे तरुओं से छन के
छम छम बिजली चमक रही रे उर में घन के
थम थम दिन के तम में सबने जगते मन के
ऐसे पागल बादल बरस नहीं धरा पर
जल फुहार बौधारें धारें गिरतीं झर झर
आंधी हर हर करती दल मर्मर तरू चर चर
दिन रजनी औ पाख बिना तारे शशि दिनकर
महादेवी वर्मा
कहां गया वो श्यामल बादल
जनक मिला था जिसको सागर
सुधा सुधाकर मिले सहोदर
चढ़ा सोम के उच्च शिखर तक
वात संग चंचल
कहां गया वह श्यामल बादल
अब कुछ शेर आपके लिए-
शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है,
मेरे अन्दर बारिश होती रहती है
– अहमद फ़राज़
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
– जमाल एहसानी
घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
– मुनीर नियाज़ी
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
– परवीन शाकिर
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
-क़तील शिफ़ाई
याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नजर देखा था
-नासिर काज़मी
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
-निदा फ़ाज़ली
बरस रही थी बारिश बाहर
और वो भीग रहा था मुझमें
-नज़ीर क़ैसर