हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब, पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियां हमने। मेराज फैज़ाबादी का ये शेर पिता का चेहरा, उनके कपड़े-जूते, उनके बात करने का अंदाज सब एक झटके में सामने ले आया। हम तो शायद आज भी अपने पापा से ये नहीं कह पाएंगे कि उनका होना, क्या होना है हमारे लिए। हमारी हिम्मत भले न हो उनसे कभी थैंक यू कह पाने की लेकिन दिल जानता है कि उनके बिन हालत क्या होती है। फादर्स डे तो हम बच्चों के लिए हर दिन है क्योंकि उसका हाथ सिर पर न हो तो कब हालातों की आंधी उड़ा ले जाए, पता भी न चलेगा। गैरों की दुनिया में जब चादर फटेगी, पिता ही होगा जो पैबंद लगाएगा, उसका साया ही होगा, जो हर मुसीबत के बाद जिंदगी रफू करेगा और जिसके सहारे के धागे से हमारे डर की तुरपाई होगी।

पापा की पाई-पाई, हमारे शौक की तुरपाई
पिता उस चट्टान की तरह होता है, जिससे टकराकर मुसीबतों की आंच हम तक नहीं आ पाती। अभाव, पिता के भाव के आगे दम तोड़ देते हैं। हम सबके पापा लोगों पर तो किताब लिखी जा सकती है। पूरा घर जब किसी त्योहार और समारोह पर सजने-संवरने की तैयारी करता है, तब पिता हाथ में पर्ची लिए देखते रहते हैं कि जरूरत को कोई सामान छूटा तो नहीं। स्कूल के बैग से लेकर नौकरी के लिए ढूढ़े गए कमरे तक का एक-एक सामान हमें उनके मौजूदगी और संघर्ष की याद दिलाता है। जब तक हम खुद नहीं कमाते, हमें पिता की पाई-पाई बचाने की आदत अच्छी नहीं लगती। वो पार्टी में भी पुराने या फटे जूतों में सहज कैसे हो जाते हैं, ये जिम्मेदारियां तय करती हैं। हम बाहर खाने के स्वाद पर ध्यान देते हैं और पिता इस बात पर कि जेब भी न खाली हो और हमारा पेट भी न खाली हो। दुआ, दवा हर जगह पिता होते हैं। कभी मन ठीक करने के लिए, कभी तन।

हम सब अच्छे बच्चे नहीं !
आज भले हम अपने पिता को गले लगाने में संकोच करें, उन्हें कह पाने में झिझकें लेकिन महसूस कर सकते हैं कि पेट काटकर इस दुनिया में हमें पालने का हौसला माता-पिता का ही होता है। पिता उम्र से भले बूढ़ा हो जाए, जिम्मेदारी से नहीं होता। 80 साल का पिता भी बच्चों को भूखा देख काम पर निकल पड़ने का माद्दा रखता है। लेकिन हम बच्चे उनके काबिल नहीं बन पाते। जगह-जगह खुलते वृद्धाश्रम देखकर कलेजा मुंह को आ जाता है। क्या हम इतने खोखले हो गए कि हमारी कमाई को 2 पैसा अपने माता-पिता की सेहत पर और दिन के 2 मिनट उनके हाल-चाल पर खर्च नहीं कर सकते। हम निकल जाते हैं कमाने, अपनी जिंदगी बनाने लेकिन क्या उनकी भावनाओं को भी आंगन में दफन कर आते हैं। क्या अपने पिता को हम अपनी गोद में वैसे नहीं बिठा सकते, जैसे वे हमें बिठाते थे। क्या हम दो पल को ये नहीं सोच सकते कि लौटकर जिंदगी की वही कहानी होती…बुढ़ापे में बेटे की जवानी ही, बाप की जवानी होती है। Happy Father’s day Papa.