देवरिया। जापान जैसा विकसित देश बुजुर्गों की बढ़ती संख्या को लेकर परेशान है। कई समस्याओं में से बुढ़ापा जापान की एक प्रमुख समस्या बनकर सामने आ रही है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर यूसूके नरिता जापानी बुजुर्गों की सामूहिक आत्महत्या की बात करते हैं। जिसे सुनकर दुनिया चौंक गई है और खुद जापानी दो धड़ों में बंट गए हैं।
सामुहिक आत्महत्या पर एक नहीं जापान
हाराकिरी यानी खुद की जान लेना। इसे जापान में सम्मान से देखा जाता है। जापान के लोक साहित्य में भी ऐसे परिवारों की कहानियां हैं, जो अपने घर के बुजुर्गों को दूर जंगल में या फिर पहाड़ पर मरने के लिए छोड़ आते हैं। बुढ़ापे से परेशान जापान की समस्याओं का भी अब ऐसा ही समाधान सामने आया है। हालांकी इस पर जापान अभी एकमत नहीं है। प्रोफेसर यूसूके कहते हैं- ‘जापान में जन्मदर घटी है। बुजुर्गों की बढ़ती आबादी की पेंशन पर देश को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। विकसित देशों में जापान सबसे ज्यादा कर्ज में डूबा हुआ है। जापानी मुद्रा येन अपने निचले स्तर पर चल रही है। जापान की राजनीति और कारोबार में बुजुर्गों का कब्जा है। उन्हें हटाकर युवाओं के हाथ में बागडोर देनी होगी। वे साफ करते हैं कि सामूहिक आत्महत्या सिर्फ एक उपमा है- जिसका मतलब समाज के हर हिस्से से बुजुर्गों को हटाकर युवाओं को लाना है।’
अलग-अलग विशेषज्ञों की राय अलग-अलग
बुजुर्गों की सामूहिक आत्महत्या के यूसूके के विचार जापान ही नहीं यूरोप और अमेरिका में टीवी शो की बहस का हिस्सा बन गए हैं। ये सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। बुजुर्गों को जापानी समाज के हर क्षेत्र से हटाने, पेंशन बंद करने जैसी बातों के समर्थन में जापान के युवा भी आ गए हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो के समाजशास्त्री यूकी होंडा कहते हैं- “ऐसे विचार समाज में नफरत पैदा करेंगे”। जापानी पत्रकार मसाकी कुबोता कहते हैं- “ये गैरजिम्मेदार विचार हैं। पोते को लगने लगेगा कि उसके दादा-दादी उसकी परेशानी की वजह हैं। इसलिए उन्हें मार देना चाहिए”। न्यूजवीक जापान में स्तंभकार मसातो फुजीसाकी कहते हैं- “इसे सिर्फ उपमा की तरह ही नहीं लेना चाहिए। दशक भर पहले जापान के तत्कालीन वित्त मंत्री तारो आसो ने कहा था, बुजुर्गों को जल्दी मरना चाहिए। इसलिए वे सरकारी खर्च पर बुजुर्गों का इलाज भी बंद कर देना चाहते थे”।
अमीर बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा नीति पर सवाल
जापान में यूथेनेशिया को कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन कई सर्वे में पता चला है कि जापान में ज्यादातर लोग इसके पक्ष में हैं। यूसूके नरिता ने एक साक्षात्कार में कहा कि-“ जापान में इसे कानूनी ही नहीं अनिवार्य किए जाने की जरूरत है”। इसके बाद जापान में सामाजिक सुरक्षा और इसके लिए हो रहे खर्च पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। कुछ जापानी युवाओं का आरोप है कि बिना काम किए अमीर बुजुर्ग भी पेंशन ले रहे हैं, जिससे देश कर्ज में डूब गया है।