देवरिया। काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन मसाने की होली खेली जाती है, इस बार भी शनिवार को बड़ी संख्य में शिवभक्तों ने चिता भस्म की होली खेली। मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली के लिए देश विदेश से हजारों की संख्या में लोग पहुंचे हुए थे। हर-हर महादेव का उद्घोष और भस्स से रमे लोगों की भीड़ का नजारा देखते ही बन रहा था।

मान्यता है कि भूत-पिशाच सभी खेलते हैं होली
मसाने की होली के पीछे की मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के ससुराल में गौने का कार्यक्रम होता है जिसमें ससुराल वालों के अनुरोध पर भूत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, औघड़ और अघोरियों को आमंत्रित नहीं किया जाता है। ये सभी नाराज ना हों इसलिए बाबा विश्वनाथ मणिकर्णिका घाट पर इनके साथ अगले दिन चिता भस्म की होली खेलते हैं। माना जाता है तब से बाबा विश्वनाथ हर साल भूत-पिशाचों के साथ यहां होली खेलने आते हैं।

351 साल पुरानी मानी जाती है यह परंपरा
मसाने की होली की परंपरा को 351 साल पुरानी मानी जाती है। पहले मसाने की होली संन्यासी और गृहस्थ दोनों मिलकर खेला करते थे, लेकिन बीच में किसी कारणवश इस परंपरा को बंद कर दिया गया था। अब 31 सालों से यह परंपरा फिर से निभाई जा रही है। मणिकर्णिका घाट और श्मशानेस्वर महादेव मंदिर के लोगों ने मिलकर इस परंपरा को दोबारा शुरू किया। मान्यता है कि इस दौरान भगवान शिव खुद अपने भक्तों को तारक मंत्र देते हैं।
सबसे पहले होती है बाबा मसाननाथ की आरती
मसान होली की शुरूआत सबसे पहले बाबा मसाननाथ की भव्य आरती के साथ होता है। आरती से पहले बाबा मसाननाथ को भस्म, अबीर-गुलाल और रंग चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद सैकड़ों डमरुओं की आवाज के बीच बाबा की भव्य आरती की जाती है।
जीवन और मृत्यु के सत्य से होता है परिचय
बाबा मसाननाथ की आरती होते ही युवाओं की टोली जलती चिताओं की ओर दौड़ पड़ते हैं। डमरू, नगाड़ो की थाम और हर-हर महादेव के जयकारे के बीच भस्म लेकर होली खेलने की शुरूआत हो जाती है। इस समय मणिकर्णिका घाट एक ऐसा स्थान होता है जहां एक तरफ मृत्यु होती है तो दूसरी तरफ जीवन का उमंग, हर्ष और उल्लास। काशी की मसान होली जीवन-मृत्यु के सत्य से परिचय कराने वाली होती है।