देवरिया : भगवान शिव का सबसे प्रिय सावन का महीना 14 जुलाई से शुरू हो चुका है। सावन का महीना 12 अगस्त तक चलेगा। सावन के महीने की शुरुआत होते ही शिव भक्तों का मंदिरों में तांता लग जाता है। इस बार सावन के महीने में चार सोमवार पड़ रहे हैं। पहला सोमवार 18 जुलाई को है। सावन के सोमवार में भगवान शिव के भक्त व्रत रखते हैं। भगवान शिव को देवों का देव महादेव भी कहा जाता है। भगवान शिव के अस्त्र, शास्त्र व वस्त्र सभी देवी देवताओं से अलग हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव के गले में नाग क्यों विराजमान है? आइए जानते हैं आखिर इसके पीछे क्या कारण है।
शिव का नागों ऐसा हैं संबंध
भगवान शिव के गले में लिपटे नजर आने वाले सांप का नाम वासुकी है, जो भगवान शिव के प्रिय भक्त हैं। कहते हैं कि नागवंशी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे, इन सभी से शिव जी को बड़ा लगाव था। इस बात का प्रमाण नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है। इसके नाम से पता चलता है कि शिव नागों के ईश्वर हैं और शिव का उनसे अटूट संबंध हैं। इसी को देखते हुए हर साल नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन पूरे श्रद्धा भाव से नागों की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा करने से भगवान शिव को खुशी मिलती है और वो अपने भक्तों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
गले में रहने का दिया वरदान
जानकारी के अनुसार नागों के शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक नाम से पांच कुल थे। इनमें से शेषनाग नागों का पहला कुल माना जाता है। इसी तरह आगे चलकर वासुकि हुए, जो पूरे सच्चे भाव से भगवान शिव की भक्ति किया करते थे। भगवान शिव वासुकी की श्रद्धा-भाव और पूर्ण भक्ति देखकर बेहद खुश हुए और वासुकी को गले में धारण करने का वरदान दिया। शिव की भक्ति से मिले इस वरदान के कारण ही सांप भगवान शिव के गले में लिपटा हुआ नजर आता है।
यह भी है कथाएं
ऐसा भी कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को मेरू पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह लपेटकर मंथन किया गया था। एक तरफ उन्हें देवताओं ने पकड़ा था तो एक तरफ दानवों ने। इससे वासुकी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। इससे शिव शंकर बेहद प्रसन्न हुए थे। इसके अतिरिक्त जब वासुदेव कंस के डर से भगवान श्री कृष्ण को जेल से गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते में झमाझम बारिश हुई थी। इस बारिश में भी वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। मान्यता तो यह भी है कि वासुकी के सिर पर ही नागमणि विराजित है।
ज्योतिष के अनुसार भगवान शिव को आदि गुरु माना गया हैं। शिव ने ही अपने प्रिय भक्तों को तंत्र साधना और ईश्वर को पाने का रास्ता दिखाया है। शिव में साधना से कुण्डलिनी शक्ति को नियंत्रित कर लेने की शक्ति हैं, जिसका प्रतीक उनके गले में लिपटा सांप माना गया हैं। यानी की शिव सर्प जैसे विषैले, भयानक और विरोधी भाव वाले जीव के साथ भी अपना सामंजस्य स्थापित कर लिया है। इसके अलावा शिव ने सांप को गले में लपेटकर यह भी संदेश दिया है कि दुर्जन भी अगर अच्छे काम करें, तो ईश्वर उसे भी स्वीकार कर लेते हैं।