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श्री जगन्नाथ रथ यात्रा 2023: गुंडिचा मंदिर पहुंचे भगवान जगन्नाथ, 90 दिन बाद होगी वापसी

देवरिया। विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलभद्र की रथ यात्रा जय जगन्नाथ के जयघोष के साथ शाम करीब 4.30 बजे निकाली गई। दोपहर के बाद राजा ने रथ के रास्ते को परंपराअनुसार सोने के झाड़ू से साफ कर रथ यात्रा की शुरुआत की। रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से निकलकर लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पहुंची। रथ के साथ-साथ लाखों की संख्या में श्रद्धालु साथ-साथ चल रहे थे और जय जगन्नाथ का घोष कर रहे थे। 90 दिन गुंडिचा मंदिर में रहने के बाद आषाड़ के शुक्ल पक्ष की दसमी तिथी को वापस अपने मंदिर में लौटेंगे। इस बार पुरी के मौसम ने भी रथ यात्रा का साथ दिया और वहां मौसम सुहावना रहा। शासन प्रशासन की तरफ से भी भक्तों के लिए रथ यात्रा के रूट पर स्प्रिंकलर की व्यवस्था की गई थी साथ ही सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए थे।


रथ पर बैठ मौसी के घर जाते हैं भगवान
रथ यात्रा का विवरण हिंदू पवित्र ग्रंथों जैसे-पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराणों में मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन, भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं और फिर वहां से गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इसके पीछे धार्मिक मन्यता है कि एक दिन पुरी के राजा इंद्रद्युम को भगवान जगन्नाथ ने सपने में दर्शन देकर कहा कि कि वे साल में एक बार गुंडिचा मंदिर जाना चाहते हैं। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार, राजा इंद्रद्युम ने आषाढ़ के शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की प्रतिमाओं को रथ में बैठाकर एक यात्रा निकाली और उन्हें उनकी मौसी के घर से होते हुए गुंडिचा मंदिर ले गए। तभी से हर साल इसी तिथि को भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है।


रथ यात्रा के 15 दिन पहले बीमार हो जाते हैं भगवान
रथ यात्रा के 15 दिन पहले यानी जेष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं को स्नान के लिए निकाला जाता है। इस परंपरा को पहांडी कहा जाता है। भगवान को सूती वस्त्र पहनाकर आसन में बैठाया जाता है और फिर 108 सोने के बर्तन से कुएं के पानी में चंदन मिलाकर नहलाया जाता है। इस स्नान के बाद ऐसा माना जाता है कि भगवान भीषण गर्मी के बीच कुएं के ठंडे पानी से नहाने के कारण बीमार हो जाते हैं। इसके बाद 15 दिनों तक भगवान शयन कक्ष में विश्राम करते हैं किसी भी भक्त को उनके दर्शन की अनुमति नहीं होती। इस बीच भगवान सिर्फ काढ़ा, खिचड़ी और फलों का रस पीते हैं। जिसके बाद भगवान आषाण शुक्ल की द्वितीया तिथि के दिन स्वस्थ्य होते हैं और फिर इसी दिन रथ यात्रा निकाली जाती है।


तीनों भाई बहनों के लिए बनाए जाते हैं अलग-अलग रथ
रथ यात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों के लिए अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं तीनों रथों की अपनी-अपनी खासियत होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ 45 फीट ऊंचा होता है जिसमें 16 पहिए होते हैं। इस रथ को लाल और पीले कपड़े से सजाया जाता है। इस रथ की रक्षा गरुड़ करता है। इस रथ को दारुका चलाता है। रथ में जो झंडा लहराता है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी कहते है। इसमें चार घोड़े होते हैं। इस रथ में वर्षा, गोबर्धन, कृष्णा, नरसिंघा, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान व रूद्र विराजमान रहते है।
भाई बलराम की रथ की ऊंचाई 43 फीट होती है, इसमें 14 पहिए होते हैं। बलभद्र के रथ की सजावट लाल, नीले और हरे रंग के कपड़ों से की जाती है। इस रथ को मताली नाम का सारथी चलाता है। माना जाता है इसकी रक्षा वासुदेव करते हैं। इसमें गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला, प्रलाम्बरी, हटायुध्य, मृत्युंजय, नाताम्वारा, मुक्तेश्वर, शेषदेव विराजमान रहते हैं। इसमें जो झंडा लहराता है, उसे उनानी कहते है. इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे बासुकी नागा कहते है
सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं और इसकी ऊंचाई 42 फीट होती है। इसकी सजावट लाल और काले रंग से होती है। इस रथ की रक्षा जयदुर्गा करता है और इसका सारथी अर्जुन को माना जाता है इसमें नंद्बिक झंडा लहराता है। इसमें चंडी, चामुंडा, उग्रतारा, वनदुर्गा, शुलिदुर्गा, वाराही, श्यामकली, मंगला, विमला विराजमान होती है। इसे जिस रस्सी से खींचते है, उसे स्वर्णचुडा नागनी कहते है।रथ को खींचने के लिए लोगों की भीड़ लगी होती है। मान्यता है कि जो भी रथ की रस्सी खींचता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

मूर्ति में धड़कता है भगवान श्रीकृष्ण का दिल
मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण अपना देह त्यागकर वैकुण्ठ धाम चले गए, तब उनके शरीर का अंतिम संस्कार पांडवों ने पुरी में किया था। भगवान श्री कृष्ण का पूरा शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया थालेकिन उनका हृदय जीवित रहा। तब से आज तक उनके हृदय को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में सुरक्षित रखा गया है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण का दिल ही ब्रह्म पदार्थ है। यह दिल भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर आज भी धड़कता है।

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