देवरिया। गीताप्रेस गोरखपुर, भारत के करोड़ों घरों का हिस्सा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हिन्दू धार्मिक गंथ्रों की सबसे बड़ी प्रकाशक गीता प्रेस की स्थापना 100 साल पहले हुई थी। इन 100 वर्षों में गीता प्रेस ने श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस, रामायण, पुराण, उपनिषद, तुलसीदास और सूरदास के साहित्य की करोड़ों पुस्तकें छापी हैं। हमारा परिचय भी गीता प्रेस से अपने घरों में श्रीमद्भगवद्गीता, रामचरितमानस जैसेधार्मिक ग्रंथों के माध्यम से हुआ है। 100 सालों सेकरोड़ों लोगों तक गीता के उपदेश पहुंचाने वाली और भगवान राम के चरित की कथा सुनाने वाली गीता प्रेस को भारत सरकार ने ‘गांधी शांति पुरस्कार’दिए जाने की घोषणा की है।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिया पीएम मोदी को धन्यवाद
इस पुरस्कार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने विचार करने के बाद गीता प्रेस का नाम फाइनल किया। प्रधानमंत्री मोदी ने गीता प्रेस को शुभकामनाएं दी हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री का धन्यवाद किया है।सीएम योगी ने ट्वीट किया कि भारत के सनातन धर्म के धार्मिक साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ प्राप्त होने पर हृदय से बधाई।स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर मिला यह पुरस्कार गीता प्रेस के धार्मिक साहित्य को एक नई उड़ान देगा।इसके लिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी का हार्दिक आभार।
गोरखपुर की गीताप्रेस को दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित प्रेस में से एक माना जाता है। यहां पर सभी प्रकार के ग्रंथों जैसे गीता, महाभारत, रामायण की छपाई सालों से होती आ रही है।
क्यों और किन्हें दिया जाता है ‘गांधी शांति पुरस्कार’
भारत सरकार ने ‘गांधी शांति पुरस्कार’ की स्थापना 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर की थी। यह पुरस्कार एक प्रकार से महात्मा गांधी के आदर्शों को श्रद्धांजलि है। यह पुरस्कार किसी भी देश के नागरिक या संस्था को दिया जा सकता है। इसके लिए देश, भाषा, जाति किसी का बंधन नहीं है। पुस्कार से सम्मानित व्यक्ति या संस्था को एक प्रशस्ति पत्र, पट्टिका, एक पारंपरिक हस्तशिल्प या हथकरघा स्मृति के रूप में और एक करोड़ रुपए की राशि शामिल है।
देश-विदेश में इतने लोगों को मिल चुका है यह पुरस्कार
अब तक इस पुरस्कार से देश और विदेश में कई व्यक्ति और संस्था सम्मानित हो चुके हैं जिनमें से मुख्य रूप से ग्रामीण बैंक ऑफ बांग्लादेश, रामकृष्ण मिशन, एकल अभियान ट्रस्ट इंडिया, सुलभ इंटरनेशनल नई दिल्ली, विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी, अक्षयपात्र बेंगलुरू शामिल हैं। साथ ही मशहूर हस्तियों में यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रिका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला और तंजानिया की पूर्व राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे को दिया जा चुका है। साल 2019 में यह पुरस्कार ओमान के सुल्तान काबूस बन सईद अल सईद, ओमान को और 2020 का पुरस्कार बांग्लादेशके बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को दिया गया था।
100 साल पुरानी संस्था
गीता प्रेस की स्थापना 29 अप्रैल 1923 में गोरखपुर में की गई थी। इस प्रेस को जय दयाल गोयनका, घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने मिलकर स्थापित किया था। हनुमान प्रसाद पोद्दार गीता प्रेस से निकलने वाली पत्रिका ‘कल्याण’ के जीवनभर संपादक रहे थे। गीता प्रेस के आर्काइव में लगभग साढ़े तीन हजार पांडुलिपिया हैं।
अनोखा है यहां का काम करने का तरीका
गीता प्रेस क्योंकि धार्मिक पुस्तकों की छपाई करती है इसलिए यहां का काम करने का तरीका भी अनोखा है। यहां हर नए दिन काम की शुरुआत करने से पहले सभी कर्मचारी प्रार्थना करते हैं और उसके बाद ही अपने काम की शुरुआत करते हैं। कार्य के वक्त भी कोशिश की जाती है कि भगवान का नाम जपते रहें। यहां पर एक आदमी की नियुक्ति ही इसीलिए की जाती है की वो दिनभर प्रेस में घूमता रहे और लोगों को भगवान का नाम लेने का याद दिलाता रहे। पुस्तकों को जमीन पर नहीं रखा जाता है।
प्रेस अपने उसूलों का कड़ाई से पालन करता है
स्थापना से लेकर अब तक गीता प्रेस अपने बनाए गए उसूलों पर कायम है। गीता प्रेस से छपी किसी भी धार्मिक किताब में कभी भी कोई विज्ञापन नहीं होता। प्रेस का सारा काम गवर्निंग काउंसिल संभालती है। प्रेस कभी चंदा नहीं मांगती। प्रेस का सारा खर्च समाज के वो लोग चलाते हैं जो प्रेस को किफायती दामों पर छपाई में लगने वाला सामान उपलब्ध कराते हैं। प्रेस में अब तक 41.7 करोड़ धार्मिक किताबें छप चुकी है जिसमें से सिर्फ 16.21 करोड़ गीता की ही प्रतियां हैं। सभी किताबें गुजराती, मलयाली, मराठी, तमिल, बंगला समेत कुल 14 भाषाओं में छप चुकी हैं।
गांधी पुरस्कार लेकर तोड़ी अपनी परंपरा, लेकिन राशि नहीं ली
जैसा कि गीता प्रेस की परंपरा है कि वह स्थापना से लेकर अभी तक किसी प्रकार की सम्मान राशि या पुरस्कार नहीं लेती है। लेकिन गांधी पुरस्कार स्वीकार कर पहली बार अपनी परंपार तोड़ी। प्रेस बोर्ड ने सम्मान को ग्रहण कर लिया लेकिन 1 करोड़ की पुरस्कार की राशि स्वीकार ना करते हुए अपने उसूलों पर टिकी रही। गांधी शांति पुरस्कार के साथ-साथसम्मान के रूप में 1 करोड़ रुपए की राशि दी जाती है।
गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार पर कांग्रेस को आपत्ति
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार देने पर आपत्ति जताई है और ट्वीट करते हुए लिखा- “गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना सावरकर और गोडसे को पुरस्कृत करने जैसा है। यह फैसला एक उपहास जैसा है।” उन्होंने अक्षय मुकुल की किताब “गीता प्रेस एंड मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया”का कवर पेज शेयर करते हुए लिखा है – “ये किताब बहुत अच्छी जीवनी है, इसमें लेखक ने संगठन के महात्मा के साथ तकरार भरे संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चल रही लड़ाइयों का खुलासा किया है।”
बीजेपी ने किया पलटवार
भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के विरोध पर पलटवार किया है। बीजेपी ने कहा कि ‘गीता प्रेस’ भारत की संस्कृति से जुड़ी है, हिंदू मान्यताओं के साथ जुड़ी है, अफोर्डबेल साहित्यका निर्माण करती हैऔर इसके ऊपर आरोप वो लगा रहे हैं, जो कहते थे कि मुस्लिम लीग सेक्युलर थी।
कवि कुमार विश्वास ने कांग्रेस के विरोध पर ट्वीट किया कि पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्दार जी व अन्य महापुरुषों द्वारा उत्प्रेरित गीताप्रेस गोरखपुर जैसा महान प्रकाशन, दुनिया के हर सम्मान के योग्य है। करोड़ों-करोड़ आस्तिकों के परिवारों तक न्यूनतम मूल्य में सनातन-धर्म के पूज्य ग्रंथ उपलब्ध कराना महान पुण्य-कार्य है। ऐसी प्यारी संस्था के लिए यह विष-वमन उचित नहीं।