देवरिया : महाराष्ट्र का सबसे बड़ा त्योहार गणेशोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सोमवार को गणेश चतुर्थी से पहले मुंबई के सबसे मशहूर लाल बाग के राजा की पहली झलक दिखाई गई है। लाल बाग में हर साल भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है और यहां दूर-दूर से भक्त दर्शन-पूजन को आते हैं। आज मैं आप को लाल बाग के राजा के बारे में बता रहे हैं।
साल 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव की शुरुआत की थी। इसकी शुरुआत करने का उद्देश्य उस दौर में सभी भारतीयों को एक साथ इकट्ठा करने के लिए था। लेकिन उस दौर में कुछ समकालीन नेताओं ने इसका विरोध किया था। उनके विरोध के पीछे तर्क यह था कि गणेशोत्सव के बड़े आयोजन से सांप्रदायिक दंगों को बेवजह हवा मिल सकती है। लेकिन तिलक नहीं माने, उन्होंने इस त्योहार को भारतीय एकता के लिए जरूरी माना और इसकी शुरुआत कर दी।

पुणे से हुई शुरुआत
साल 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरुआत की गई। इसके बाद यह त्योहार महाराष्ट्र सहित देशभर में फैल गई। कहा जाता है कि शुरू में महाराष्ट्र के नागपुर, वर्धा और अमरावती के लोगों ने इस त्योहार के मनाने के तरीके से अंग्रेजों के हौसले पस्त कर दिए। तिलक के इस कदम ने जनमानस में जबरदस्त उत्साह और जोश का संचार कर दिया। अंग्रेजी साम्राज्यवाद भी इस त्योहार से बढ़ती एकजुटता को देखकर हैरान रह गया। तिलक ने इस त्योहार को केवल धार्मिक तानेबाने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसका प्रयोग स्वतंत्रता आनंदोलनों के लिए भी किया गया।

गणेशोत्सव का स्वरूप
आजादी के बाद गणेशोत्सव का स्वरूप और व्यापक हो गया। महाराष्ट्र में इस त्योहार का स्वरूप आधुनिक हो गया। गणेश उत्सव मनाने का तरीका इतना आकर्षक था कि सभी धर्मों के लोगों ने इसमें भाग लेना शुरू कर दिया। इस त्योहार के माध्यम से एकता और भाईचारे का संदेश भी फैलाया जाने लगा। गणेशोत्सव के दौरान लोगों में शिक्षा और चिकित्सा को लेकर भी लोगों को जागरूक किया जाने लगा।

दुनियाभर में मशहूर हैं लालबाग के राजा
बाद में चलकर मुंबई में गणेशोत्सव का त्योहार बहुत प्रसिद्ध हो गया। इतना प्रसिद्ध हो गया कि देश के दूसरे राज्यों से भी लोग मुंबई आने लगे। लोगों के बीच यह कहा जाने लगा कि मुंबई गए, अगर गणेशोत्सव नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा। मुंबई में लाल बाग के राजा की प्रसिद्धि इतनी अधिक हो गई कि लोग पंक्ति लगाकर लाल बाग के दरबार में जाने लगे।
लाल बाग के राजा का भी अपना एक इतिहास रहा है। साल 1934 से हर साल मुंबई के लाल बाग इलाके में लाल बाग के राजा की विशाल प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसे आजादी मिलने से पहले पेरू चाल बाजार के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में यह किसी कारण से बंद हो गया। इसके बाद नए रंग रूप में जब यह शुरू हुआ तो अपनी भव्यता के कारण खूब चर्चित हुआ। माना जाने लगा कि लाल बाग के राजा से जो मन्नत मांगी जाती है, वह पूरी हो जाती है। इसके बाद इसे मन्नत का राजा भी कहा गया। यहां आकर लोग मन्नत मांगने लगे।

लाल बाग के राजा को मन्नत के राजा
आज जिस जगह पर लाल बाग के राजा विराजमान हैं, उस जगह पर अंग्रेजों के जमाने में मिल मजदूर रहते थे। यहां के लोगों ने मन्नत रखी कि अगर उनके सिर की छत बची रही तो वो गणपति की प्रतिमा स्थापित करेंगे। गणपति ने उनकी मन्नत मान ली। कॉलोनी के लोगों को नई जगह पर नया आशियाना मिल गया । इसके बाद गणपति को नया नाम मन्नत के राजा मिल गया ।
लाल बाग के राजा के दरबार में लगनेवाली लंबी लाइन की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। यहां दो तरह की कतार लगती है। एक केवल राजा के दर्शन के लिए, दूसरी कतार मन्नत की कतार। साल 1932 से लेकर 1989 तक गणेश प्रतिमा का रूप रंग बदलता रहा, लेकिन साल 1990 से गणपति का रंग रूप नहीं बदला है। गणपति की इस प्रतिमा की एक और खासियत यह है कि इसे बाहर से नहीं खरीदा जाता है, बल्कि प्रतिमा वहीं बनाई जाती हैं जहां पर वो स्थापित होती है। पिछले दो साल से कोरोना पाबंदियों के कारण इसे भव्य रूप से नहीं मनाया जा रहा था। अब एक बार फिर लोगों में लाल बाग को लेकर काफी उत्साह देखा जा रहा है।
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