देवरिया: बच्चों में गुस्सा, आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और इसका डरावना उदाहरण छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में देखने को मिला। यहां एक नाबालिग लड़की ने सड़क पर साइड नहीं देने पर नाराज होकर एक मूक-बधिर युवक से पहले गाली-गलौज की फिर चाकू से हमला कर उसकी हत्या कर दी। इस वाकये ने सबको सकते में डाल दिया है और ये सवाल फिर उठने लगे हैं कि आखिर बच्चों में इस तरह का व्यवहार क्यों पनपने लगा है और इसके कारण क्या हैं।
किशोर ने कर दी थी मां की हत्या
वहीं कुछ दिनों पहले ऐसी खबरें सुनने को मिली थी, जिसे सुनकर या पढ़कर हर किसी को आने वाली पीढ़ी के भविष्य की चिंता हुई होगी। पहली खबर लखनऊ से थी, जहां एक 16 साल के किशोर ने अपनी मां की 6 गोलियां दागकर हत्या कर दी। वजह सिर्फ इतनी थी कि मां ने उसे मोबाइल पर गेम खेलने से मना किया था। इतना ही नहीं किशोर ने हत्या कर लाश 3 दिन तक घर में छिपाए रखी और चश्मदीद बहन को भी धमका कर चुप रहने को कहा। मर्डर के बाद भी उसका रवैया ऐसा था कि उसे जरा भी अफसोस नहीं है।
दूसरी खबर भी हैरान करने वाली है। झांसी में 10वीं कक्षा में पढ़ रहा किशोर अपने माता-पिता को खाने में नींद की गोलियां दिया करता था, जिससे वो रात भर आराम से गेम खेल सके। इसी तरह मुंबई में मां ने मोबाइल पर गेल खेलने से मना किया तो किशोर ने ट्रेन से कटकर जान दे दी।
इतने बेसब्र कैसे हो गए बच्चे
ऐसे कौन-कौन से कारण हैं जिसके चलते बच्चे इतने बेसब्र हो गए हैं। उनमें इतनी झुंझलाहट भर गई है कि वो ना तो अपने मां-बाप की बात सुनने को तैयार हैं ना किसी बाहर वालों की। एक नाबालिग के अंदर इतना गुस्सा कहां से पनपा कि सिर्फ साइड नहीं देने पर गुस्से में उसने इतना बड़ा अपराध कर डाला। साइकोलॉजी कहती है कि कोई शख्स अगर गुस्से में है और उसके पास हथियार है तो उस हथियार का उपयोग होना तय है। शायद यही ऐसे अपराध का कारण बन जाता है।
ये खतरे की घंटी है
क्या ये सिर्फ खबरें हैं जिन्हें पढ़कर हमें अपने रोजमर्रा के कामों में लग जाना चाहिए? नहीं, ये खतरे की घंटी है, जो हर माता-पिता को सुन लेनी चाहिए। बच्चों के इस व्यवहार के पीछे कहीं न कहीं उनके पैरेंट्स भी जिम्मेदार हैं। बच्चों को चुप कराने के लिए, खाना खिलाने के लिए या कभी अपना काम निपटाने के लिए फोन दे देते हैं। बच्चों को कब इसकी लत लग जाती है, पता ही नहीं चलता। बाद में बच्चे फोन मांगते हैं और पैरेंट्स इसी चीज के लिए मना करने लगते हैं। इससे उनमें चिड़चिड़ापन घर करने लगता है। WHO का कहना है कि 2 साल की उम्र तक बच्चों की स्क्रीन टाइमिंग शून्य होनी चाहिए।
बच्चों को समझना बड़ों की जिम्मेदारी
अब बहुत से माता-पिता के मन में सवाल ये आएगा कि ऑनलाइन पढ़ाई के जमाने में बच्चों को मोबाइल से और उनसे होने वाले नुकसान से दूर कैसे रखें। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है उनका दोस्त बनकर गतिविधियों पर नजर रखना। वो आपसे हर बात शेयर करेंगे और लगेगा भी नहीं कि आप उनपर नजर रख रहे हैं। बच्चे सहज होंगे तो आपसे चर्चा करेंगे। उनके आस-पास स्कूल में, फ्रेंड सर्किल में होने वाली हर एक्टिविटीज के बारे में आपको जानकारी होगी। वो हमसे अपनी परेशानी शेयर करने में सहज होंगे। इस तरह अगर वो किसी विषम परिस्थितियों का सामना कर रहे होंगे या दबाव में होंगे तो वो भी आपको पता चल जाएगा। सिर्फ अपने बच्चों के साथ ही नहीं आप उनके दोस्तों के साथ भी दोस्ताना व्यवहार रखें इससे आपको संगत की जानकारी रहेगी। साथ ही आप समय-समय पर देखते रहें कि आपका बच्चा फोन पर क्या देखता रहता है।
स्क्रीन टाइम फिक्स होना जरूरी
मोबाइल गेम्स एक तरह की लत होती है। उन्हें ऐसे प्रोग्राम किया जाता है कि एक बार खेल कर बच्चे संतुष्ट नहीं होते। हारने पर जीतने की कोशिश में खेलते जाते हैं और लत लग जाती है। जीत बार-बार खेलने का प्रेशर बनाती है। गेम्स कब भावनाओं को जाहिर करने का जरिया बन जाता है, पता ही नहीं चलता। वे गुस्सा निकालने के लिए भी गेम का सहारा लेते हैं। ज्यादा स्ट्रिक्ट बनकर बच्चों से मोबाइल नहीं लिया जा सकता और आजकल पढ़ाई के लिए भी मोबाइल की जरूरत पड़ती है। इस समय मोबाइल ना देना भी मुमकिन नहीं है। इसके लिए एक तो हमें भी टेक्नॉलॉजी की जानकारी रखनी होगी, जिससे पता रहे की बच्चा मोबाइल पर कब क्या करता है। बच्चों की स्क्रिन टाइमिंग फिक्स करनी होगी कि दिन में 1 घंटा ही मोबाइल पर बिताएं। बाकी दिनों में उन्हें दूसरी एक्टिविटीज में बिजी रखें, जिससे उन्हें मोबाइल का ध्यान कम आए।
बच्चों के बदलते व्यवहार पर करें गौर
इन सबके अलावा हमें भी अपने अंदर कुछ बदलाव करना होगा, जब तक हम मोबाइल का उपयोग कम नहीं करेंगे तब तक बच्चों को कैसे इसके लिए तैयार करेंगे। अगर आप ये पता करना चाहते हैं कि उन्हें मोबाइल की लत कैसे लग रही है तो इन आदतों पर गौर करें कि वो खाना खाने से इनकार कर रहे हैं, मेहमानों के पास जाने में रुचि नहीं है, अपना रूटीन बदल रहे हैं या फिर हर वक्त चिड़चिड़ा रहे हैं। अगर अचानक सख्ती करेंगे तो बच्चा ऐसे कदम उठा लेगा। इससे बेहतर है कि आप मोबाइल देते वक्त सावधानी के साथ-साथ उनकी एक्टिविटीज पर नजर रखें और एक दोस्त की तरह व्यवहार करें, जिससे बचपन की मासूमियत जिंदा रहे।



