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कोई जमानत लेने वाला नहीं था, बिना जुर्म के 16 साल सजा काटी, जेल से छूटने के बाद फिर जेल जाने का ‘डर’

देवरिया। कानपुर देहात के रहने वाले आशीष कुमार ने 16 साल जेल में उस जुर्म की सजा भुगती जो उसने की ही नहीं थी। किसी तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट में उसकी बेगुनाही साबित हुई और 16 बाद अदालत ने उसे निर्दोष करार देकर रिहा किया। लेकिन यूपी सरकार ने आशीष की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है और नोटिस भेजा है। अपने जीवन के सबसे अहम 16 साल जेल में काटने के बाद फिर से सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस पाकर आशीष को बहुत बड़ा झटका लगा है। उसकी माली हालत ऐसी नहीं है कि वह अपने केस की पैरवी के लिए वकील भी ले सके।

2005 के मामले में हुई थी सजा
मामला 2005 का है, उस समय एक छात्र का अपहरण हुआ था। पुलिस की जांच में छात्र का कुछ पता नहीं चला। काफी दिनों के बाद एक सुनसान जगह पर नरकंकाल मिला जिसे अपहृत छात्र की लाश मान लिया गया गया । उसकी हत्या का आरोप आशीष कुमार पर लगा। पुलिस ने आशीष को जिला कारागार कानपुर भेज दिया। आशीष की तरफ से मजबूत पैरवी ना हो पाने की वजह से आशीष को सेशन कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा मिल गई।

जमानत के लिए भी नहीं थे पैसे
आशीष की तरफ से अपनी सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की गई। लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी की विचाराधीन अवधि से लेकर अपील की आखिरी सुनवाई तक एक बार भी हाई कोर्ट में उसकी जमानत की कोई अर्जी नहीं लगाई गई। 2014 में आशीष को अपनी उम्रकैद की सजा काटने के लिए फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

समीउज्जमान खान की मदद से साबित हुआ निर्दोष
2020 में आशीष ने जेलपाल की मदद से इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील कृपा शंकर सिंह से मदद मांगी। जिसके बाद एडवोकेट समीउज्जमान खान जो पैरविविहीन कैदियों की मदद करते हैं, उन्होंने जेल से आशीष का वकालतनामा मंगाया और हाईकोर्ट में आशीष की पैरवी की। जिसके बाद 13 जनवरी 2021 को आशीष हाई कोर्ट में निर्दोष साबित हुआ और उसे रिहा कर दिया गया।


यूपी सरकार ने फिर कोर्ट में घसीटा
आशीष ने निर्दोष होने के बावजूद अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण 16 साल जेल में काटे। अब निर्दोष साबित होने के बाद जब आशीष अपना जीवन सामान्य करने और रोजगार के लिए संघर्ष कर रहा है, ऐसे में यूपी सरकार ने आशीष के दोषमुक्त होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल पिटिशन दाखिल कर उसे नोटिस भेजा है।

उम्रकैद पर क्या है यूपी सरकार की नीति
उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ जघन्य अपराध के कैदियों को छोड़कर बाकी मामलों में 16 साल जेल में बिताने के बाद उम्रकैद के कैदियों को रिहा करने की नीति बनाई हुई है। इस नीति में 60 वर्ष उम्र सीमा का भी एक अवरोध लगाया गया था। लेकिन बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने इस 60 साल के प्रतिबंध को हटाने के लिए सरकार और हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि 10 साल सजा काट चुके बंदियों, जिनकी अपील तुरन्त निस्तारित न हो सके उन्हें जमानत पर छोड़ा जाए। इसके बावजूद अभी भी पैरावीविहीन सैकड़ों बंदी 20-20 साल से जेल में बंद हैं।

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