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उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा- “अदालत राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकती”

देवरिया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश की  न्यायपालिका की भूमिका को लेकर बड़ा सवाल उठाते हुए बयान दिया है। उन्होंने यह बात सुप्रीम कोर्ट के द्वारा राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्देश दिए जाने वाले मसले पर दिया है। उनका कहना है कि  अदालते राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती। दरअसल 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक टिप्पणी के जरिए सलाह दी थी कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर राज्यपालों द्वारा भेजे गए लंबित विधेयकों पर फैसला ले लेना चाहिए।

“सुप्रीम कोर्ट का अधिकार सिर्फ संविधान की व्याख्या करना

उपराष्ट्रपति ने कहा कि- “सुप्रीम कोर्ट को केवल संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है और वह भी कम से कम 5 जजों की पीठ द्वारा। हम ऐसी स्थिति नहीं ला सकते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिया जाए। संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट का अधिकार केवल अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है।  जब यह अनुच्छेद बनाया गया था, तब सुप्रीम कोर्ट में केवल 8 जज थे और अब 30 से अधिक हैं। हालांकि, आज भी 5 जजों की पीठ ही संविधान की व्याख्या करती है। क्या यह न्यायसंगत है।”

“सोचा नहीं था राष्ट्रपति को कोर्ट निर्देशित करेगा

जगदीप धनखड़ ने इस मामले में अपने गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि- “मैंने कभी नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति को सुप्रीमकोर्ट निर्देश देगा। राष्ट्रपति भारत की सेना की सर्वोच्च कमांडर हैं और केवल वही संविधान की रक्षा, संरक्षण और सुरक्षा की शपथ लेते हैं। फिर उन्हें एक निश्चित समय में निर्णय लेने का आदेश कैसे दिया जा सकता है। हाल ही में जजों ने राष्ट्रपति को लगभग आदेश दे दिया और उसे कानून की तरह माना गया, जबकि वे संविधान की ताकत को भूल गए। अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ एक ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ बन गया है, जो चौबीसों घंटे न्यायपालिका के पास उपलब्ध है।”

पूर्व जजों के फैसलों को लेकर भी उठाए सवाल

उपराष्ट्रपति ने कुछ पूर्व जजों के किए गए फैसलों का भी जिक्र किया और उसपर सवाल उठाए। इस दौरान उन्होंने एक पूर्व जज की ओर से लिखित पुस्तक के विमोचन समारोह का जिक्र किया, जिसमें ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ सिद्धांत की प्रशंसा की गई थी। इस पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि- “केशवानंद भारती केस में 13 जजों की पीठ थी और फैसला 7 अनुपात 6 से हुआ था। इसे अब हमारी रक्षा का आधार बताया जा रहा है, लेकिन उसी के दो साल बाद 1975 में आपातकाल लगाया गया। लाखों लोगों को जेल में डाला गया और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार लागू नहीं होंगे। फिर इस सिद्धांत का क्या हुआ?”

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