देवरिया न्यूज़

किसी ने गरीबी तो किसी ने समाज की बुराई पर पाई जीत, देश की सशक्त बेटियों की कहानी

देवरिया: एक समय था जब महिलाओं को दुनिया के किसी भी देश में पुरुषों के समान अधिकार नहीं थे। लंबी लड़ाई के बाद आज आधी आबादी को राजनीति, शिक्षा, नौकरी, पैतृक संपत्ति में हक समेत कई राइट्स मिल गए हैं। आज महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। वर्तमान में कई जटिल परिस्थितियों से लड़ते हुए औरतों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। वे न सिर्फ खुद अकेले लड़ीं बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी रास्ता आसान किया। ऐसी महिलाएं, जिन्होंने समाज से लड़कर अपने अधिकारों को जाना और घूंघट में रहकर भी पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान बना ली। आज हम आपके लिए लाए हैं ऐसी नारी शक्ति कीं कहानियां, जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए प्रेरणा देने का काम करेंगी।

रूमा देवी
पूरे देश के लिए प्रेरणा बन सकने वाली रूमा देवी राजस्थान के बाड़मेर जिले की रहने वाली हैं। रूमा राजस्थानी ट्रेडिशनल काशीदाकारी और हस्तकला में माहिर हैं। इनकी इसी कला ने इन्हें राजस्थान की फैशन डिजाइनर बना दिया है। 17 साल की उम्र में ही एक साधारण परिवार में इनका विवाह हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी तो इन्होंने बाहर निकलकर कुछ करने की सोची और अपना काम शुरू किया। शुरुआती दिनों में हाथ से ही सिलाई कर राजस्थानी बैग बनाकर बेचने पर लोगों ने इनका मजाक भी बनाया लेकिन रूमा देवी ने हिम्मत नहीं हारी। अपने साथ गांव की और भी औरतों को सिलाई और कसीदे का काम सिखाया। आज रूमा देवी के महिला समूह में लगभग 22 हजार महिलाएं काम करती हैं।

रूमा देवी के द्वारा किए गए इस उत्कृष्ट काम के लिए 2018 में राष्ट्रपति के द्वारा सर्वोच्च महिला समान नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

सिंधू ताई
‘महाराष्ट्र की मदर टेरेसा’ कही जाने वाली सिंधुताई सपकाल की कहानी जितनी दर्दनाक है, उतनी ही प्रेरणादायक। सिंधुताई का जीवन संघर्षों से भरा रहा लेकिन ऐसा एक भी दिन नहीं आया होगा जब उन्होंने अपनी परेशानियों के सामने हार मानी होगी। बचपन भी पैसों की तंगी से गुजरा। उन्हे कक्षा चार के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 10 साल की उम्र में ही उम्र में 10 साल बड़े व्यक्ति से उनकी शादी करा दी गई। ससुराल में भी उनकी हालत कुछ अच्छी नहीं थी। 20 साल की उम्र जब वो मां बनने वाली थीं, उनके पति ने उन्हें घर से निकाल दिया। सिंधुताई ने खुद बताया था की उन्होंने अपने बेटी को गौशाला में जन्म दिया था और पत्थर से गर्भनाल काटी थी। अपनी खुद के जीवन का कुछ ठिकाना नहीं होने के कारण उन्हें अपनी बच्ची को अनाथ आश्रम में देना पड़ा। लेकिन रेलवे स्टेशन पर एक लावारिस बच्चे को देखकर उनके मन में ये बात आई कि ऐसे कितने ही बच्चे होंगे, जिन्हें मां की जरूरत होगी। वहीं से उन्हें अनाथ बच्चों को पालने की प्रेरणा मिली और उन्होंने अपनी बच्ची को भी अनाथ आश्रम से वापस ले लिया। 2 बच्चों से शुरू हुआ उनका ये संघर्ष से भरा सफर महाराष्ट्र में 5 बड़ी संस्थाओं के रूप में स्थापित हुआ।

भारतीय समाज में पति के द्वारा त्यागी हुई महिला जिसे मायके में भी जगह नहीं मिली उसकी जिंदगी के दर्द का अंदाजा लगाया जा सकता है। इतना सब सह कर भी सिंधुताई टूटी नहीं बल्कि हजारों बच्चों की मां बनीं। सिंधू ताई को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड मिलाकर 170 से अधिक अवार्ड मिले । 4 जनवरी 2022 को पुणे में सिंधुताई का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

फूल बासन बाई
राजनांदगांव जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली फूलबासन बाई यादव पर पूरे छत्तीसगढ़ को गर्व है। सिर्फ पांचवीं कक्षा तक पढ़ीं फूलबासन बाई जन्म से ही गरीबी में पली-बढ़ीं। उनकी पढ़ाई अधूरी रह जाने की बड़ी वजह आर्थिक तंगी थी। शादी और चार बच्चों के बाद भी गरीबी से संघर्ष जारी रहा। अपने बच्चों को भूख से तड़पता देख फूलबासन बाई ने एक बार खुदकुशी की कोशिश भी की थी लेकिन उनकी बेटी ने उन्हें रोक लिया। बाद में उन्होंने ठान लिया कि अपने बच्चों को एक अच्छी जिंदगी देंगी। 2001 में उन्होंने 2 रुपए और दो मुट्ठी चावल से 11 महिलाओं के साथ महिला समूह शुरू किया। छोटे से गांव की बहु और रुढ़ीवादी समाज का हिस्सा होने के चलते इसके लिए उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन फूलबासन बाई ने हार नहीं मानी। कुछ ही दिनों में बमलेश्वरी ब्रांड के नाम से उन्होंने अचार बनाना शुरू किया, जिसकी डिमांड बढ़ने लगी। आज मां बमलेश्वरी स्व-सहायता समूह में लगभग 2 लाख महिलाएं काम कर रही हैं और फूलबासन बाई समूह की अध्यक्ष हैं।

पद्मश्री से सम्मानित की गईं फूलबासन बाई
महिला समूह के साथ फूलबासन बाई बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य,घरेलू हिंसा, शराब बंदी के लिए भी काम करती हैं। महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए महिलाओं की फौज भी है जो हमेशा साथ देने के लिए खड़ी रहती हैं। महिलाओं की फौज के चलते गांव में घरेलू हिंसा अब नाम मात्र रह गई है। इसके अलावा फूलबासन बाई डेयरी, मछली पालन, बकरी पालन और खाद कंपनी भी चला रही हैं, जिसकी वजह से लाखों महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। 2012 में फूलबासन बाई को पद्मश्री से स्मानित किया गया था साथ ही राज्य सरकार की जननी सुरक्षा योजना की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं।

भारत ने अपने हर महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं को सुशोभित किया है। हमारी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू महिला हैं। मैरीकॉम हों या फोगाट बहनें ये सब करोड़ों महिलाओं की हिम्मत हैं। आज देश की हर बिटिया अपने आस-पास के उदाहरणों से सीख लेकर आगे बढ़ने का सपना देख रही है। हाल ही में 18 साल की अंतिम पंघाल अंडर 20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर इस चैंपियनशिप में सबसे पहले गोल्ड जीतने वाली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। 3 बहनों के बाद जब अंतिम का जन्म हुआ तो माता पिता ने लड़का ना होने पर उनका नाम अंतिम रख दिया था कि अब उन्हें लड़की नहीं चाहिए। ऐसी करोड़ों कहानियां हैं, जहां बेटियों ने अपने होने को साबित किया है।

http://newsdeoria.com/constable-babali-become-dsp-in-bihar/

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