देवरिया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने आज पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर बड़ा ऐलान कर सबको चौंका दिया है। उन्होंने कार्यक्रम में सुप्रिया सुले और पार्टी उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया है। 2 मई को शरद पवार के द्वारा दिए गए इस्तीफे और फिर इस्तीफा वापस लेने वाली घटना के बाद से अटकलें लगाई जा रही थी पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष के नाम की घोषणा होगी लेकिन अजित पवार के नाम की घोषणा नहीं होना उनके लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।

नए कार्यकारी अध्यक्षों को कहां-कहां की जिम्मेदारी
शरद पवार की घोषणा में यह भी साफ किया गया कि सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब की जिम्मेदारी दी जाएगी। साथ ही सुप्रियाNCP की राष्ट्रीय चुनाव समीति की अध्यक्ष भी हो सकती हैं। वहीं प्रफुल्ल पटेल को मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, झारखंड गोवा की जिम्मेदारी दी गई है। साथ ही राज्यसभा का पार्टी प्रभारी भी नियुक्त किया गया है। इस जिम्मेदारी के बाद प्रभुल्ल पटेल का कद भी पार्टी बढ़ गया है।

घोषणा से नाराज दिखे अजित पवार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पार्टी के कार्यक्रम में कार्यकारी अध्यक्षों के ऐलान होने और उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दिए जाने के बाद अजित परेशान नजर आए। अजित कार्यक्रम से बीच में ही उठकर बिना कुछ बोले चले गए। शरद पवार के द्वारा दी गई जिम्मेदारी के अनुसार अब अजित पवार को सुप्रिया सुले के अंडर काम करना होगा और उन्हें ही रिपोर्ट करना होगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि आगे अजित पवार क्या बड़ा कदम उठाते हैं।
शरद और अजित पवार में 2019 चुनाव से ही आ गई थी दरार
साल 2019 में हुए महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 105 सीटें मिली थी लेकिन पार्टी के पास बहुमत नहीं था बहुमत के लिए भजापा को 145 विधायकों का समर्थन चाहिए था। उस समय अजित पवार ने शरद पवार से सलाह लिए बिना ही भाजपा को अपना समर्थन दे दिया था। जिसके बाद देवेंद्र फडनविस ने सीएम पद की शपथ ली और अजीत पवार को डिप्टी सीएम का पद दिया गया। शरद पवार को यह नागवार गुजरा और उन्होंने 5 दिन में ही गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी परिणाम स्वरूप देवेंद्र फणनवीस की सरकार गिर गई। इसके बाद एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई।
जब शिवसेना दो गुटों में बंटी तब फिर से यह बात होने लगी की अब अजित पवार भाजपा का साथ देना चाहते हैं। जबकी शरद पवार ऐसा नहीं चाहते थे। आखिर में शिंदे वाली शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई।