देवरिया। इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने यानी शाबान के 15वीं तारीख को शब-ए-बारात का त्योहार मनाया जाता है। इस साल 7 मार्च को शब-ए-बारात का त्योहार मनाया जाएगा। शाबान महीने के बाद रमजान का महीना शुरू होता है। रमजान महीने मुसलमानों में सबसे पवित्र महीना शुमार किया जाता है। इस महीने के दौरान मुसलमान रोजे रखते हैं।
शब का मतलब अरबी में रात होता है और बरात का मतलब बरी करना या माफी। मुस्लिम समुदाय में ये त्यौहार बेहद खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। शब-ए-रात को पाक रात माना जाता है और इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं। साथ ही उनसे हुए अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। ऐसा माना जाता है कि भाग्य का फैसला, आनेवाले साल के लिए इसी रात किया जाता है। इसी वजह से मुसलमान इस रात को खास इबादत करते हैं।
इस रात बड़ी संख्या में लोग कब्रिस्तान पर जाते हैं और अपने पूर्वजों या दुनिया से जा चुके रिश्तेदारों और करीबियों के लिए खास तौर पर दुआएं करते हैं। दरअसल, शब-ए-बरात की रात मुहम्मद साहब जन्नतुल बकी (मदीने की कब्रिस्तान) गये थे। उसी एतबार से मुसलमान उनका अनुसरण करने लगे। इस्लाम में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है, जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है।
इस्लाम धर्म के अनुसार, इस रात अल्लाह अपनी अदालत में पाप और पुण्य का लेखा-जोखा लेते हैं और अपने बंदों के किए गए कामों का हिसाब-किताब करते हैं। जो लोग पाप करके जहन्नुम में जी रहे होते हैं, उनको भी इस दिन उनके गुनाहों की माफी देकर जन्नत में भेज दिया जाता है। इस दिन अल्लाह सबको माफी देते हैं, लेकिन वो लोग जो मुसलमान होकर दूसरे मुसलमान से वैमनस्य रखते हैं, दूसरों के खिलाफ साजिश करते हैं और दूसरे की जिंदगी का हक छीनते हैं उनको अल्लाह कभी माफ नहीं करता है।
रोजा रखने की फजीलत
इस दिन रोजा रखने का भी रिवाज है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है। लेकिन अगर रोजा न भी रखा जाए तो गुनाह नहीं मिलता है, लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है।



