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हालातों के तूफान में संध्या ने आंसू नहीं पसीना बहाया, पति की मौत के बाद बनीं कुली, बच्चों को बनाना चाहती हैं अफसर

देवरिया। मध्यप्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर आपकी निगाहें एक महिला को देखकर ठहर जाएंगी। लाल कुर्ते में 36 नंबर का बैच लगाए ये महिला यात्रियों और अपनी जिम्मेदारियों का बोझ उठाए नजर आएगी। इनका नाम संध्या है और ये वो काम करती हैं, जो आमतौर पर पुरुषों का माना जाता है। संध्या कुली हैं। भारी-भरकम लगेज उठाने का फैसला संध्या ने जीवन में आए एक तूफान के बाद लिया और आज सम्मान के साथ अपना जीवन बिता रही हैं। संख्या का एक ही सपना है अपने बच्चों को अफसर बनाना।


पति के देहांत के बाद शुरू किया यह काम
संध्या जबलपुर के कुंडम गांव की रहने वाली हैं। कुछ साल पहले उनके पति की बीमारी की वजह से मौत हो गई थी, जिसके बाद घर चलाने के लिए सिर्फ वे ही बची। संध्या के 3 बच्चे हैं। 2 लड़का और एक लड़की। अपने साथ-साथ संध्या के सिर पर तीनों बच्चों की भी जिम्मदारी आ गई थी। संध्या जब काम की तलाश में थी तभी किसी ने उन्हें कुली की नौकरी के बारे में बताया और संध्या ने यह काम शुरू कर दिया।


45 पुरुष कुलियों के बीच अकेली महिला है संध्या
कटनी स्टेशन पर 45 कूली है, जिनमें संध्या अकेली महिला हैं। लेकिन संध्या ने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। वो रोज पुरुष कुलियों के बराबर ही बोझ उठाती हैं। वे रोज काम के लिए गांव से जबलपुर आती हैं और फिर जबलपुर से कटनी। यहां आकर वो दिनभर भार उठाने का काम करती हैं और शाम को फिर 250 किलोमीटर का सफर तय कर घर पहुंचती हैं। बच्चों के पालन पोषण के लिए दिन भर मेहनत करके संध्या ने साबित कर दिया कि एक मां अपने बच्चों के लिए कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना कर सकती है।

बच्चों को बनाना चाहती हैं अफसर

संध्या को भले ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका ना मिला हो लेकिन वो पढ़ाई की कीमत अच्छी तरह से समझती हैं। संध्या इतनी मेहनत सिर्फ अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए करती हैं। वो चाहती हैं उनके तीनों बच्चे अच्छी तरह पढ़ाई करें और बड़े होकर अफसर बनें ताकि उन्हें कभी भी अपनी मां की तरह कठिन परिस्थियों का सामना ना करना पड़े।

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