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ये हैं भारत में स्थित माता के 10 प्रमुख मंदिर, जानिए इनसे जुड़ी मान्यताएं और कथाएं

देवरिया: भारत में कई देवी मंदिर हैं। देश के कोने-कोने में माता कई रूपों में विराजित होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रही हैं। इन मंदिरों में कई ऐसे मंदिर हैं जो काफी प्रचीन हैं। सभी मंदिरों में भक्तों का बहुत विश्वास है। इन प्राचीन मंदिरों में किसी की वास्तुकला हैरान करने वाली है, तो किसी के पीछे की पौराणिक कथा काफी रोचक है। इस नवरात्रि आइए आपको देश के 10 बड़े देवी मंदिरों में माता के दर्शन कराते हैं और जानते हैं उनसे जुड़ी मान्यताओं और लोगों की आस्था के बारे में।

कामाख्या मंदिर असम
कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दीसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में स्थित है। देवियों के सभी शक्तिपीठों में इसे महापीठ माना जाता है। कामाख्या देवी का मंदिर तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है यहां पर मां सती की योनी गिरी थी। मंदिर के र्भगृह में माता की कोई मूर्ति नहीं है बल्की एक कुंड जैसी रचना है, जो हमेशा फूलों से ढकी रहती है। इस कुंड का आकार योनि की तरह है। असम में अम्बुवाची मेला लगता है। माना जाता है इस दौरान माता को 3 दिन का मासिकधर्म होता है तब मां के दरबार में एक सफेद कपड़ा रख दिया जाता है और 3 दिन बाद पट खोला जाता है। पट खोलने पर सफेद कपड़ा पूरी तरह से लाल हो चुका होता है। जिसे अम्बुवाची कहते हैं। इसे भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यह लाल कपड़ा बहुत पवित्र और शुभ माना जाता है।

मीनाक्षी अम्मन मंदिर, तमिलनाडू
मीनाक्षी अम्मन मंदिर तमिलनाडू के मदुरै में वैगई नदी के पास स्थित है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मीनाक्षी मंदिर असल में मां पार्वती का मंदिर है, उन्हें ही मीनाक्षी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती और शिवजी का विवाह इसी मंदिर में हुआ था। ये पूरा मंदिर और शिल्प शास्त्र के अनुसार बनाया गया है। मंदिर के सामने भाग में दीवारों और खम्भों पर विशेष कलाकृतियां बनाई गई हैं, जो इस मंदिर का मुख्य आकर्षण हैं। मंदिर की वजह से यह जगहल एक पर्यटन स्थल भी है।

बस्तर में विराजित मां दंतेश्वरी
भारत में देवी पुराणों के अनुसार 51 शक्तिपीठ माने गए हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर में दंतेवाड़ा में स्थित मां दंतेश्वरी को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता सती का दांत इस जगह पर गिरा था इसलिए माता का नाम दंतेश्वरी है। दंतेश्वरी माता के नाम से ही जगह का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। मंदिर शंखनी-डंकनी नदी के तट पर स्थित है। इसे भी तांत्रिक साधना का केंद्र भी माना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि नदी के तट पर सात भैरव भाइयों का निवास है।
आज भी दंतेवाड़ा के जंगलों में कई साधु गुप्त रूप से साधना करते देखे जा सकते हैं। माता दंतेश्वरी को बस्तर का राज परिवार अपनी कुल देवी मानता है और पूरे बस्तरवासी माता को अपनी रक्षक मानते हैं। मंदिर में पुरुषों को सिले हुए कपड़े पहन कर जाना वर्जित है। मंदिर परिसर में लुंगी दी जाती है, पुरुषों को वही पहन कर दर्शन करना होता है।

वैष्णव देवी, जम्मू
माता वैष्णो देवी का मंदिर जम्मू में कटरा से 14 किलोमीटर दूर त्रिकूटा पर्वत पर स्थित है। वैष्णो माता मंदिर भी देवी मंदिरों में प्रमुख मंदिर है। वैष्णो माता मंदिर से जुड़ी एक कथा के अनुसार माता का जन्म दक्षिण भारत में काफी समय से निसं:तान रहे दंपति के घर हुआ था। वैष्णो माता के पिताजी का नाम रतनाकर था। वैष्णो देवी के बचपन का नाम त्रिकुटा था बाद में विष्णु के वंश में जन्म लेने के कारण उनका नाम वैष्णवी रखा गया। मंदिर में माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में पिंडी रूप में स्थित हैं।

काली मंदिर, कलकत्ता
कलकत्ता में स्थित कालीघाट में माता काली का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। सभी शक्तिपीठों में यह मंदिर सबसे सिद्ध मंदिर माना जाता है। यहां पर माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा पैर गिरने की मान्यता है। कहा जाता है पहले यह मंदिर हुगली नदी, जिसे भागीरथी भी कहा जाता है के किनारे स्थित था लेकिन भागीरथी धीरे-धीरे मंदिर से दूर होती गई और अब मंदिर आदिगंगा नाम की नहर के किनारे है। कोलकाता में दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। नवरात्रि में कालीघाट मंदिर में विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। माता के दर्शन के लिए पूरे देश से श्रद्धालु आते हैं।

हिडिम्बा मंदिर, मनाली
हिडिम्बा देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के मनाली में स्थित है। यह मंदिर पांडवों में से एक भीम की पत्नी हिडिम्बा का मंदिर है। मनाली घूमने आए पर्यटक मंदिर दर्शन के लिए जरूर आते हैं। यह मंदिर एक गुफा के चारों तरफ बनाई गई है। मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि हिडिम्बा देवी के पद चिन्हों की पूजा की जाती है। हिडिम्बा एक राक्षसी थी, जिसने भीम से विवाह किया था। उन्हें अपने राक्षसी होने से मुक्ति चाहिए थी, जिसके लिए उन्होने तप किया था। तपस्या सफल होने पर उन्हें देवी का दर्जा दिया गया। जिस चट्टान पर उन्होंने तप किया था उसी पर मंदिर का निर्माण करवाया गया है।

करणी माता, राजस्थान
करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर में स्थित है । इस मंदिर को चूहों के एकमात्र मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में 20 हजार काले और सफेद चूहे हैं जिनको काफी पूजनीय भी माना जाता है और इन्हें दूध का भोग भी लगाया जाता है। इन चूहों को वहां पर कब्बा कहा जाता है। मुगल शैली में बने इस मंदिर में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। मंदिर के मुख्य द्वार के समेत अंदर के कई द्वार चांदी से बने हुए हैं।

चामुंडा देवी, हिमाचल प्रदेश
देव भूमि हिमाचल प्रदेश में माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। माना जाता है यहां पर माता सती की खोपड़ी गिरी थी। भारत के नौ देवियों के दर्शन में चामुंडा देवी का दर्शन दूसरे नंबर कर किए जाने की मान्यता है। नवरात्रों में माता के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। माता अपने भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी करती हैं।

छिन्नमस्ता माता, हिमाचल प्रदेश
छिन्नमास्ता मता को मां चिंतपूर्णी भी कहा जाता है। माता का यह मंदिर हिमाचल के ऊना में स्थित है। कहा जाता है माता अपने भक्तों की चिंता हरने वाली है इसलिए इन्हे चिंतपूर्णी माता कहा जाता है। माता यहां पर पिंडी रूप में विराज मान हैं। चिंतपूर्णी या छिन्नमस्तिका माता देवी त्रिपुर सुंदरी का ही रौद्र रूप माना जाता है। चिंतपूर्णी माता भी शक्तिपीठ में से एक है।

ज्वााला देवी, हिमाचल प्रदेश

देवी हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वालामुखी नामक जगह में ज्वाला देवी शक्ति पीठ स्थापित है। ज्वाला देवी मंदिर बाकी सभी शक्ति पीठों से अलग है क्योकि इस मंदिर में माता की किसी प्रकार की मूर्ती स्थापित नहीं है बल्की यहां पर गर्भगृह में नौ ज्वालाएं जलती रहती हैं और उसी की पूजा की जाती है।ज्वाला देवी मंदिर में नौ ज्वालाओं के उपर ही मंदिर का निर्माण काराया गया है और प्राकृतिक रूप से निकल रही ज्वालाओं को ही पूजा जाता है। इन ज्वालाओं को नौ देवियों का रूप माना जाता है जिनमें से 9 देवियां इस प्रकार है- महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजीदेवी।

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