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हल षष्ठी व्रत: जानिए पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और मान्यताएं

देवरिया: अपनी संतान की लंबी उम्र, उनकी सुख-समृद्धि और अच्छे जीवन के लिए महिलाएं हल षष्ठी व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से निसंतान महिलाओं की सूनी गोद भी भर जाती है। इस बार हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को पड़ रहा है। यह उपवास भाद्रपद माह षष्ठी तीथि को किया जाता है। इस दिन हल से जुते हुए अनाज नहीं खाए जाते साथ ही, हल जुते खेत पर चला भी नहीं जाता इसलिए इसे हल षष्ठी व्रत कहा जाता है। आइए इस व्रत में उपयोग में लाई जाने वाली पूजा की सामग्री और पूजा की विधि के बारे में जानते हैं।

हलषष्ठी व्रत की पूजन सामाग्री
पूजा में लगने वाली सभी सामग्रियों के साथ हल षष्ठी व्रत में विशेष रूप से भैंस का दूध, दही और घी का उपयोग किया जाता है, साथ ही महुआ और लाई का भी पूजा में विशेष महत्व है। पूजा के लिए बांस की 6 छोटी टोकरियों या मिट्टी के छोटे-छोटे मटकों में लाई और 6 प्रकार के अनाज के दाने भरकर छठी माता में चढ़ाया जाता है। कुछ जगहों में बताशे से बने छोटे मटके भी चढ़ाए जाते हैं क्योकि बताशे बच्चों को बहुत पसंद होते हैं।

हलषष्ठी व्रत की पूजन विधि

हलषष्ठी व्रत के दिन सुबह नहा कर शुद्ध होने के बाद महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं। घर में या घर के बाहर छोटा गड्ढा खोदकर तालाब बनाया जाता है उसमें पलाश, झरबेरी, काशी के पौधे लगाए जाते हैं। कहीं-कहीं महिलाएं दीवार पर घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। पूजा वाली जगह पर गौरी-गणेश की स्थापना की जाती है। साथ ही गीली मिट्टी से बने शिव लिंग की भी स्थापना की जाती है। प्रतीक रूप में बनाए गए छोटे तालाब को सगरी कहा जाता है।

पूजा शुरू करने के लिए सबसे पहले कलश को प्रज्ज्वलित किया जाता है फिर गौरी गणेश की पूजा कर व्रत की पूजा की शुरुआत की जाती है। गौरी-गणेश में चंदन, रोली, हल्दी अर्पित कर फूल और दूब चढ़ाया जाता है। फिर सगरी में चंदन, रोली, गुलाल लगाकर पूजा की जाती है फिर सगरी में 6 बार पानी चढ़ाया जाता है। बच्चों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व होने के कारण सगरी में मिट्टी के छोटे-छोटे खिलौने बनाकर भी चढ़ाया जाता है। इसके बाद लाई-बताशों से भरी 6 टोकरी चढ़ाई जाती है। आखिर में आरती कर भोग चढ़ाया जाता है और अपनी संतान के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है।

अलग-अलग क्षेत्रों में पूजा की विधि में थोड़ा-थोड़ा अंतर होता है। लेकिन सभी जगह षष्ठी माता की ही पूजा की जाती है। इस दिन हलषष्ठी व्रत की कथा सुने बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती इसलिए पूजा के बाद आखिर में सभी महिलाएं मिलकर कथा सुनती हैं।

हलषष्ठी व्रत का है विशेष महत्व
हलषष्ठी के दिन प्रभु बलराम की भी जयंती होती है, जिसके चलते कुछ स्थानों पर हल की भी पूजा की जाती है, साथ ही खेतों में उपयोग होने वाले औजारों की भी सफाई करके उनकी भी पूजा-अर्चना होती है। हलष्ठी व्रत का विशेष महत्व संतान प्राप्ति और संतान की कुशलता के लिए होता है। मान्यता है हलष्ठी माता की कृपा से इस व्रत को करने वाली उन महिलाओं को भी संतान की प्राप्ति होती है, जिनकी गोद सूनी है।

व्रत के लिए शुभ दिन

वैसे तो षष्ठी तिथि 16 अगस्त को रात 8 बजकर 19 मिनट पर शुरू हो जाएगी लेकिन 17 अगस्त को सूर्योदय षष्ठी तिथि में होने के कारण और रात 9 बजकर 21 मिनट तक होने के कारण, उदयातिथि के अनुसार हलषष्ठी का व्रत 17 अगस्त को ही शुभ माना गया है।

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