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शहीद कुलवंत सिंह के पिता ने भी करगिल में दी थी शहादत, पिता-पुत्र दोनों ने एक रेजीमेंट में एक ही उम्र दिया बलिदान

देवरिया। देश की रक्षा करते हुए शहीद हुआ हर जवान अपने पीछे परिवार और एक कहानी छोड़ जाता है। जवानों के बलिदान की कहानी उन्हें और बड़ा बना देती है। देश को उनके परिवार के प्रति कर्जदार बना देती है। ऐसी ही एक कहानी है जम्मू-कश्मीर के पुंछ में हुए आतंकी हमले में शहीद कुलवंत सिंह खुद एक शहीद के बेटे थे। उनके पिता बलदेव सिंह ने करिगल में मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राण गंवाए थे। जवानों का परिवार देश को अपना बेटे, पति और पिता दे देता है और खुद अनाथ हो जाता है।

करगिल युद्द में शहीद हो चुके हैं पिता
कुलवंत सिंह पंजाब के मोगा जिले के चरिक गांव के रहने वाले थे। कुलवंत के पिता बलदेव सिंह भी 1999 में करगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो चुके हैं। बलदेव सिंह भी सिख लाइट इन्फैंट्री का हिस्सा थे और उनके बेटे कुलवंत सिंह भी सिख लाइट इन्फैंट्री का हिस्सा थे। दोनों की शहादत में एक और समान बात है कि कुलवंत भी उसी उम्र में शहीद हुए हैं, जिस उम्र में उनके पिता शहीद हुए थे। कुलवंत को 2010 में उनके पिता की जगह सेना में नौकरी मिली थी।


3 महीन के मासूम बेटे ने दी मुखाग्नि
लांस नायक कुलवंत सिंह की शादी 3 साल पहले ही हुई थी। उनकी एक डेढ़ साल की बेटी और 3 महीने का बेटा है। शनिवार की सुबह गांव में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके 3 महीने के मासूम बेटे ने पिता को मुखाग्नि दी। गांव में जिसने में यह देखा उनका दिल पसीज गया और कोई खुद को रोने से नहीं रोक सका। अंतिम संस्कार के समय पत्नी हरदीप कौर, मां हरिंदर कौर, बहन चरणजीत कौर और भाई सुखप्रीत सिंह मौजूद रहे। कुलवंत अपने घर में अकेले कमाने वाले थे। उनका ये कर्ज देश कभी नहीं उतार पाएगा।


गाड़ी से कूद गए थे कुलवंत लेकिन नहीं बच पाई जान
पुंछ में हुए आतंकी हमले के बाद जवानों की गाड़ी आग लग गई थी। लेकिन कुलवंत सिंह ने गाड़ी से छलांग लगा दी थी। लेकिन गाड़ी से कूदने की वजह कुलवंत के सिर में गंभीर चोट आई, जिसकी वजह से उनकी जान नहीं बचाई जा सकी।

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