भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की बड़ी जनसंख्या पूरी तरह से खेती-किसानी पर निर्भर है। अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान कृषि का है। लेकिन आज के समय में खेती सिर्फ आय के साधनों में सीमित न होकर बड़ा व्यवसाय बन चुकी है। अब फसलों की गुणवत्ता से ज्यादा जल्दी और ज्यादा पैदावार की चिंता होती है। ज्यादा पैदावार के लिए किसान खेतों में कई प्रकार के केमिकल पेस्टिसाइड्स और रसायनिक खाद का छिड़काव करते हैं, जिससे फसल तो अच्छी हो जाती है लेकिन जमीन धीरे-धीरे बंजर होती चली जाती है। कृषि भूमि में अब जीवांश कार्बन और दूसरे पोषक तत्वों की कमी होने लगी है। अगर यही स्थिति बनी रही तो धीरे-धीरे देश में कृषि योग्य भूमि में कमी आ जाएगी।
भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है इसलिए खेती के लिए जमीन का घटना किसी मुसीबत से कम नहीं है। किसानों, वैज्ञानिकों और सरकार को मिलकर इस गंभीर समस्या का कोई सटीक समाधान निकालना होगा नहीं तो भारत को आगे चलकर भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है।

बहुत हानिकारक हैं कीटनाशक और रासायनिक खाद
कीटनाशक और रासायनिक खाद सीधे-सीधे फसलों पर डाले जाते हैं और फसलों के जरिए हमारे शरीर में जाते हैं। पेस्टीसाइट फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के साथ-साथ किसानों के मित्र कीटों को भी खत्म कर देते हैं, जिससे उपज को नुकसान पहुंचता है। इन कीटनाशकों से कीट-पतंगे और तितलियां भी मर जाती हैं और परागण की क्रिया प्रभावित होती है। इस तरह से कीटनाशक के प्रयोग से सीधे-सीधे जैव विविधता को भी नुकसान हो रहा है। शोधकर्ताओं ने किसानों को इसे लेकर चेतावनी भी दी है। फसलों पर तो इनका प्रत्यक्ष रूप से बुरा प्रभाव पड़ ही रहा है, इसके साथ ये आसपास के तालाबों, पोखरों के साथ दूसरे जल स्त्रोतों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

कार्बन और नाइट्रोजन का बिगड़ रहा है संतुलन
जमीन में कार्बन और नाइट्रोजन का मानक अनुपात 4:1 होना चाहिए लेकिन पेस्टीसाइट्स और फर्टीलाइजर्स के ज्यादा उपयोग से अब धीरे-धीरे यह अनुपात बिगड़ रहा है, इससे जमीन की उत्पादन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। कार्बन और नाइट्रोजन का बिगड़ता अनुपात कृषि वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
भारत में है सख्त कानून की जरूरत
भारत में पेस्टीसाइड्स के उपयोग को लेकर ‘इंसेक्टिसाइड एक्ट- 1986’ बना हुआ है लेकिन इसके लिए कोई सख्त नियम नहीं बनाए गए हैं। पूरी दुनिया में भारत चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक है। भारत में कुछ ऐसे कीटनाशकों के उपयोग की भी अनुमित है, जो बेहद खतरनाक और हानिकारक हैं। इनमें से कुछ ऐसे कीटनाशक भी हैं, जिनका उपयोग दूसरे देशों में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।

सरकार द्वारा चलाई जा रही है कुछ योजनाएं
मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता को बनाए रखने के लिए सरकार के द्वारा “मृदा स्वास्थ कार्ड योजना” 2015 में शुरू की गई है। इस योजना के तहत किसानों को अपने खेतों की मिट्टी की मुफ्त जांच की व्यवस्था की गई है, जिसमें जांच करके बताया जाएगा कि किसान को कितने उर्वरक और कीटनाशक का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे कि खेतों को भी नुकसान ना हो और पैदावार भी अच्छी हो।
किसानों में जागरूकता है जरूरी
अच्छी पैदावार भी हो जाए और भूमि की उर्वरता भी खराब ना हो इसके लिए सबसे जरूरी है किसानों का जागरूक होना। किसानों को सरकार की मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ का लाभ उठाना चाहिए और समय-समय पर मिट्टी की जांच कराते रहना चाहिए जिससे कि मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों की कमी ना हो। सोयाबीन और धान की फसल को हर 3-3 साल में बदल-बदल कर लगाते रहना चाहिए। बारिश के मौसम में खेतों को खाली नहीं छोड़ना चाहिए साथ ही खुद से उगी हरी घास को कल्टीवेट कर देना चाहिए जिससे की खास जैविक खाद के रूप में मिट्टी में जीवाश्म को बचाएगी। इसके साथ ही बाजार में मिलने वाले रासायनिक हानिकारक खाद की जगह गोबर से बने खाद का उपयोग करना चाहिए।

जल संसाधन विभाग (छत्तीसगढ़) में सहायक अभियंता केके दास कहते हैं कि कृषि कार्य में अत्यधिक रासायनिक खाद एवं कीटनाशक का उपयोग किए जाने के कारण कृषि भूमि की उर्वर शक्ति प्रभावित हो रही है, साथ ही प्राकृतिक जीवन चक्र भी प्रभावित हो रहा है। नतीजा ये है कि फसलों में बहुत सी बीमारियां लग रही हैं। रासायनिक खाद के अत्यधिक उपयोग के कारण फसलों के लिए लाभकारी कीट पतंगे भी नष्ट हो रहे हैं, जिसके कारण पहले के समय में जैसे फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का नियंत्रण प्राकृतिक रूप से हो जाता था, वह भी प्रभावित हो रहा है। अगर ऐसे ही रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग होता रहा तो इसके दूरगामी परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।