देवरिया: गणेशोत्सव आते ही घर-घर गणपति विराजमान हो जाते हैं। शहरों और गांवों में भी हर गली-चौराहे पर हमको गणेश पंडाल देखने को मिलता है। गणेश पक्ष के पूरे दस दिन अलग ही रौनक रहती है। पंडालों में स्थापित होने वाले गणेश जी की मूर्ति एक से बढ़कर एक मनभावन होती है। लेकिन क्या आपने ध्यान दिया है गणेश जी की सूंड किसी मूर्ति में दाईं और होती है और किसी मूर्ति में बाईं ओर। सीधी सूंड वाली मूर्तियां देखने को नहीं मिलती। गणेश जी की सूंड किस ओर मुड़ी हुई है, इसका अपना महत्व है। आइए जानते हैं सूंड की दिशा क्या कहती है।

दाई ओर मुड़ी हुई सूंड का अर्थ
जिस मूर्ति में सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई होती है उसे दक्षिणावर्ती मूर्ती कहा जाता है। दक्षिण दिशा सूर्य की नाड़ी मानी जाती है और दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाने वाली होती है। दक्षिण की ओर मुड़े हुए सूंड वाले गणपति जी को जागृत कहते हैं। दक्षिणावर्ती गणपति को मंदिरों में ही स्थापित किया जाता है और विशेष विधि-विधान से इनकी पूजा की जाती है। ऐसी मूर्तियों की पूजा में विशेष विधि-विधान और नियम पालन करना होता है, जिससे सात्विकता का प्रभाव बढ़ता है। दक्षिणावर्ती मूर्ति की पूजा विधि से नहीं करने पर गणपति नाराज हो जाते हैं।

बाई ओर मुड़ी हुई सूंड
गणेश जी की जिन मूर्तियों में सूंड बाईं ओर मुड़ी हुई होती है उन्हें वामावर्ती मूर्ती कहा जाता है। वामावर्ती गणेश जी के सूंड में चंद्रमा का प्रभाव होता है, इसलिए ये शीतलता प्रदान करने वाली होती है। उत्तर दिशा आध्यात्म की दृष्टि से शुभ माना गया है। गणेश जी के इस रूप को गृहस्थी में शांति के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। ज्यादातर पंडालों में भी बाईं ओर सूंड वाले गणेश जी को ही स्थापित किया जाता है। क्योंकि वाममुखी सूंड वाले गणेश जी की आराधना विधि आसान होती है। थोड़ी पूजा आराधना में ही ये खुश हो जाते हैं और गलतियों पर जल्दी ही क्षमा करने वाले भी होते हैं।

सीधी सूंड वाले गणपति
वैसे तो सामान्यतौर पर सीधी सूंड वाली गणेश जी की मूर्ति कम ही देखने को मिलती है। सीधी सूंड वाली मुर्ती की पूजा से रिद्धि-सिद्धि, कुंडलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए उत्तम माना जाता है। कहा जाता है साधू-संत जो समाधि आदि का अभ्यास करते हैं सीधी सूंड वाले गणेश जी की ही पूजा करते हैं।
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