देवरिया। प्रयागराज में महाकुंभ (Mahakumbh 2025)की शुरुआत हो चुकी है। देश और विदेश में रहने वाल सनातनियों और साधु महात्माओं के लिए ये कुंभ आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है। प्रयागराज में हो रहा इस बार का कुंभ और भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्णकुंभ है जो 144 सालों में एक बार आयोजित होता है। कुंभ में वहां आने वाले अखाड़ों का बड़ा महत्व होता है। महीनों पहले से ही अखाड़ों का प्रयागराज पहुंचना प्रारंभ हो जाता है।
क्या आप जानते हैं क्या होते हैं, ये अखाड़े और इन अखाड़े के साधु और संतों को क्यों कुंभ में इतना ऊंचा दर्जा प्राप्त है। आइए हम आपको बताते हैं (Mahakumbh 2025) कुंभ में कितने अखाड़े शामिल हुए हैं और इनकी विशेषता क्या है।
क्या होती है अखाड़ा परंपरा?
अखाड़ा परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है। यह परंपरा तब से चली आ रही है जब से साधु, संतों और संन्यासियों ने अपने तप और ध्यान के लिए अपना संगठन बनाना शुरू किया। इन अखाड़ों का इतिहास रामायण और महाभारत काल से भी जुड़ा होना बताया जाता है। तब साधु-संतों ने धर्म, तप और कर्म के लिए समूह बनाने शुरु किए थे। इनका उद्देश्य समाज में सनातन धर्म के अस्तित्व को और अधिक मजबूत करना और सनातन की महिमा को आगे वाली पीढ़ियों तक पहुंचना था।
भारत में कुल कितने अखाड़े हैं?
वर्तमान में भारत में कुल 13 अखाड़े मौजूद हैं। हर अखाड़े की अपनी अलग परंपरा, अपने अलग ईष्ट देव, साधना , तप की अपनी विधि होती है। अखाड़े शैव संन्यासी, वैष्णव और दूसरे पंथों को मानने वाले होते हैं। कुछ समय पहले ही कुंभ में एक और अखाड़ा शामिल हुआ वो है किन्नर अखाड़ा। इस अखाड़े के प्रमुख स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं। आइए विस्तार से सभी अखाड़ों के बारे में जानते हैं।
जूना अखाड़ा- जूना अखाड़ा सभी 13 अखाड़ों मे सबसे प्रमुख माना जाता है। इसकी स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में की गई थी। इस अखाड़े के साधु संतों के ईष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय होते हैं। जूना अखाड़े का केंद्र वाराणसी का हनुमान घाट है। नागा साधु इसी अखाड़े से संबंध रखते हैं। हरिद्वार में मायादेवी मंदिर के पास इस अखाड़े का आश्रम है। जूना अखाड़ा शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़ों में से एक है। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज हैं।
निरंजनी अखाड़ा- निरंजनी अखाड़ा गुजरात के मांडवी से संबंध रखता है। इसकी स्थापना 826 ईस्वी में हुई थी। निरंजनी अखाड़ा के ईष्ट देव कार्तिकेय को माना जाता है। इसे सबसे प्रमुख अखाड़ों मे से एक माना जाता है। इस अखाड़े के आश्रम प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, मिर्जापुर, माउंटआबू, जयपुर, वाराणसी, नोएडा, वडोदरा जैसी जगहों पर हैं। इस अखाड़े के महामंडलेश्वर अमेरिका में योग, ध्यान और संस्कृत भाषा सिखाने वाले महात्मा 76 वर्षीय व्यासनंद गिरी को बनाय गया है। कहा जाता है निरंजनी अखाड़े के पास सबसे ज्यादा धन संपदा है जिसे ये धर्म-कर्म के कामों में लगाते हैं। साथ ही इसी अखाड़े में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधु महात्मा शामिल हैं।
महानिर्वाण अखाड़ा- महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना के स्थान को लेकर अभी भी दो मत हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इसकी स्थापना बैजनाथ धाम में हुई थी। वहीं कुछ लोग इसकी स्थापना हरिद्वार में नील धारा के पास बताते हैं। महानिर्वाण अखाड़े की स्थापना 681 ईस्वी में हुई थी। इस अखाड़े के ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं। महानिर्माण की शाखा इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, त्रयंबकेश्वर, ओंकारेश्वर और कनखल में स्थापित हैं।
अटल अखाड़ा- अटल अखाड़े की स्थापना 569 ईस्वी में गोंडवाना में हुई थी। इस अखाड़े के प्रमुख देव भगवान गणेश को माना जाता है। अटल अखाड़ा प्राचीन अखाड़ों में से एक है। अटल अखाड़े का मुख्य पीठ आश्रम गुजरात के पाटन में है। वहीं इस अखाड़ के आश्रम कनखल, हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और त्रयंबकेश्वर में भी है।अटल अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद सरस्वती जी हैं।
आह्वान अखाड़ा– आह्वान अखाड़े के ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और गणपति जी हैं। इस अखाड़े को 646 ईस्वी में स्थापित किया गया था और फिर 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। काशी इस अखाड़े का केंद्र स्थान है। वहीं आश्रम ऋषिकेश में स्थापित है। आह्वान अखाड़े में नागा साधुओं का बड़ा समूह है। इनकी खासियत है कि यह कभी भिक्षा नहीं मांगते। उनके भक्त या श्रद्धालु जो उन्हें देते हैं वही खाकर वो गुजारा करते हैं।
आनंद अखाड़ा- मध्यप्रदेश के बेबार में इस अखाड़े की स्थापना 855 ईस्वी में की गई थी। इस अखाड़े का केंद्र वाराणसी में हैऔर इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में हैं। आनंद अखाड़ा के ईष्ट देव सूर्य नारायण भगवान हैं। इसे निरंजन अखाड़े का छोटा भाई कहा जाता है।
पंचाग्नि अखाड़ा- कहा जाता है इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। ये अखाड़ा गायत्री मां को अपना ईष्ट माता है और इनका मुख्य केंद्र काशी है। पंचाग्नि अखाड़े के सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल रहते हैं। इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और त्रयंबकेश्वर में है।
नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा– 866 ईस्वी में स्थापित इस अखाड़े को अहिल्या-गोदावरी संगम पर स्थापित किया गया था। पीर शिवनाथजी को इसके संस्थापक माना जाता है। गोरखनाथ इस अखाड़े के ईष्ट देव हैं और इसमें बारह पंथ शामिल हैं। इस अखाड़े का संप्रदाय योगिनी कौल के नाम से जाना जाता है।
इसके एक शाखा त्रयंबकेस्वर में भी है जो त्रयंबकंमठिका के नाम से मशहूर है।
वैष्णव अखाड़ा- इस अखाड़े की स्थापना ईस्वी 1595 में हुई थी यह बालानंद गैर शैव अखाड़ा है। इसकी स्थापना दारागंज में श्री मध्यमुरारी में हुई थी। वैष्णव अखाड़े के साथ निर्मोही, निर्वाणी, खाकी तीन संप्रदाय शामिल हुए। इनका अखाड़ा त्रयंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास हुआ करता था। लेकिन 1848 में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले शाही स्नान कोल कर कुछ विवाद हुआ उसके बाद वैष्णव अखाड़े ने त्रयंबकेश्वर के पास चक्रतीर्था में स्नान किया।
उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा– श्री चंद्रआचार्य उदासीन को उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़े का संस्थापक माना जाता है। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इस अखाड़े में उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वर शामिल हैं। इस अखाड़े की शाखाएं प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, त्रयंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में हैं।
उदासीन नया अखाड़ा– बड़ा उदासीन अखाड़े के कुछ साधु और संतों ने बड़ा उदासीन अखाड़े से अलग होकर इस अखाड़े की स्थापना की थी। इस अखाड़े के प्रवर्तक मंहत सुधीरदासजी थे। इनकी प्रमुख शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर में है।
निर्मल पंचायती अखाड़ा– इस अखाड़े की स्थापना 1784 में हरिद्वार कुंभ मेले के समय एक बड़ी सभा में श्री दुर्गासिंह महाराज के की गई थी। इस अखाड़े के ईष्ट श्री गुरुग्रन्थ साहिब है। इनमें सांप्रदायिक साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की बड़ी संख्या शामिल है। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।
निर्मोही अखाड़ा– इस अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ-मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। निर्मोही अखाड़े के अनुयायियों को पहले तीरंदाजी और तलवारबाजी भी सिखाई जाती थी।
किन्नर अखाड़ा– किन्नर अखाड़ा सबसे नया अखाड़ा है। यह एक ऐसा अखाड़ा है जिसने ट्रांसजेंडर्स को धार्मिक समानता का अधिकार दिलाया है। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों और उनकी सांस्कृतिक पहचान दिलाना और समाज में मान्यता दिलाना है। आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इसकी स्थापना 2015 में की थी।