देवरिया : हिंदू धर्म के अनुसार अमावस्या तिथि पितरों के निमित्त समर्पित होता है। 27 अगस्त शनिवार को भाद्रपद अमावस्या को शनि अमावस्या है। शनिवार को अमावस्या होने कारण शनि अमावस्या कहलाती है। शास्त्रों में भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशाग्रही अमावस्या भी कहा गया है। शनि अमावस्या पर शुभ योग में शनिदेव की पूजा और विशेष उपाय किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन खास उपाय करने से पितृ दोष और शनि दोष से छुटकारा मिलता है। यह शनि को प्रसन्न करने और पितरों को प्रसन्न करने का महत्वपूर्ण दिवस है।
अमावस्या को पितृ कार्यों के लिए बहुत ही शुभ दिन माना गया है। इस दिन प्रात:काल पितरों के निमित्त गंगा स्नान और तीर्थक्षेत्र में स्नान करना बहुत उत्तम माना गया है। पितरों के लिए जलाजंलि देना उससे भी ज्यादा उत्तम है। यदि गंगा स्नान नहीं जा सकते तो घर पर ही स्नान करने के बाद एक लोटा जल उसमें गंगाजल और काले तिल मिलाकर दक्षिण की ओर मुंह करके पितरों के निमित्त जल अर्पित करें।
इस बार की अमावस्या शनि अमावस्या के योग की वजह से और भी खास हो गई है। इस दिन शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभाव को कम करने के लिए भी खास उपाय किए जा सकते हैं। ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि शनिश्चरी अमावस्या पर विशेष उपाय करने से शनि दोष शांत हो सकता है। इसके अलावा अगर शनि देव को प्रसन्न करते हैं तो जीवन की परेशानी कम हो सकती है। कहा जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, वे इस दिन खास उपाय करते हैं। इससे पितृ दोष के मुक्ति के लिए लाभकारी होते हैं।
भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 अगस्त को 12 बजकर 24 मिनट से होगी। अमावस्या तिथि की समाप्ति 27 अगस्त को एक बजकर 47 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि की मान्यतानुसार, 27 अगस्त को ही अमावस्या की पूजा और विशेष उपाय किए जाएंगे। इसके अलावा इस दिन पद्म और शिव नामक दो शुभ योग भी बन रहे हैं।
बता दें कि भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशाग्रही अमावस्या भी कहा गया है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन कुश इकट्ठा करने की परंपरा है। कुश का इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा करने से विशेष सिद्धि प्राप्त होती है। लोग इस दिन कुश एकत्र करते हैं, ताकि समय आने पर इसका उपयोग किया जा सके। पितृ तर्पण और श्राद्ध में कुश की अंगूठी पहनी जाती है।