देवरिया। मुसलमानों का मुकद्दस महीना रमजान शुरू होने वाला है। इस बार 22 या 23 मार्च से रोजे रखे जाएंगे। शाबान का महीना खत्म होने और चांद नजर आने के अगले ही दिन से पाक महीना रमजान शुरू हो जाता है। अगर शाबान का महीना 29 दिनों का हुआ तो पहला रोजा 22 मार्च को रखा जाएगा।
खुद को खुदा की राह में समर्पित कर देने का प्रतीक पाक महीना रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश का वकफा है, बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। इस माह में दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाजे खोल दीए जाते हैं।

बताया जाता है कि रमजान के महीने में अल्लाह के लिए हर रोजेदार बहुत खास होता है और खुदा उसे अपने हाथों से बरकत और रहमत नवाजता है। इस माह में बंदे को 1 रकात फर्ज नमाज अदा करने पर 70 रकात नमाज का सवाब मिलता है, और नफील नमाज अदा करता है तो उसे फर्ज के बराबार सवाब मिलता है। इस माह में शबे कद्र की रात भी है, जिसमें इबादत करने पर एक हजार महीनों से ज्यादा वक्त तक इबादत करने का सवाब हासिल होता है।

मौलाना जावेद निजामी ने बताया कि रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है, जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए जरूरी हर बात की तरबियत देता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया की कहानी भूख, प्यास और इंसानी ख्वाहिशों के गिर्द घूमती है और रोजा इन तीनों चीजों पर नियंत्रण रखने की साधना है। रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो।

रोजे के दौरान झूठ बोलना, चुगली करना, किसी पर बुरी निगाह डालना, किसी की निंदा करना और हर छोटी से छोटी बुराई से खुद को दूर रखना जरूरी होता है। रोजा रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है, बल्कि रोजे की रूह अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है।
रमजान का महीना इसलिए भी अहम है, क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ का दुनिया में उतारा। रहमत और बरकत के नजरिए से रमजान के महीने को तीन अशरों में बाँटा गया है। इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों पर रहमतों की बारिश करता है।

कुरान शरीफ में लिखा है कि मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज किए गए हैं, ताकि इस खास बरकत वाले रूहानी महीने में उनसे कोई गुनाह नहीं होने पाए। यह खुदाई असर का नतीजा है कि रमजान में लगभग हर मुसलमान इस्लामी नजरिए से खुद को बदलता है और हर तरह से अल्लाह की रहमत पाने की कोशिश करते हैं।