देवरिया। रक्षाबंधन का पर्व केवल एक रस्म या त्यौहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के गहरे प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे की सुरक्षा के वचन का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई उसके जीवनभर सुख-सुरक्षा का वचन देता है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इस पवित्र डोर के लिए रेशम का इतना महत्व क्यों माना गया है? रेशम तो नाजुक माना जाता है, फिर भी यह इस मजबूत रिश्ते का प्रतीक कैसे बन गया? दरअसल, भारतीय परंपराओं में कोई भी चीज यूं ही नहीं होती, हर रिवाज के पीछे एक गहरी सोच और तर्क छुपा होता है, और रेशम की डोर भी इसका अपवाद नहीं है।
रेशम की डोर का विशेष महत्व
राखी बनाने के लिए बाजार में कई तरह के धागे मौजूद होते हैं कुछ रेशम से भी ज्यादा मजबूत। फिर भी, रेशम को चुनने का कारण उसकी अनोखी प्रकृति में छुपा है। रेशम का धागा समय के साथ और मजबूत होता है। जितना यह पुराना होता है, उतनी ही इसकी मजबूती और चमक बढ़ती जाती है। इसके विपरीत, बाकी धागों की मजबूती और चमक समय के साथ घट जाती है। यही गुण भाई-बहन के रिश्ते से जुड़ता है यह रिश्ता भी समय के साथ और गहराता है, और इसकी खूबसूरती बढ़ती जाती है।
धार्मिक दृष्टि से रेशम
सनातन धर्म के अनुसार, यह संसार तीन गुणों रज, तम और सत पर चलता है। इनमें से सतगुण जीवन में शांति, ठहराव और सकारात्मकता लाता है। परंपरा के अनुसार, जब रेशम की डोर को अक्षत (चावल) के साथ गांठ बनाकर भाई की कलाई पर बांधा जाता है, तो यह सतगुण को जाग्रत करता है। रेशम और चावल दोनों प्राकृतिक तत्व हैं, जो शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं और रज-तम के नकारात्मक प्रभाव को कम करते हैं।
रेशम में छुपा है संदेश
रेशम की डोर का संदेश यह है कि जैसे कि रेशम की डोर समय के साथ और भी मजबूत और चमकदार होती जाती है वैसे ही भाई-बहन का रिश्ता समय के साथ और मजबूत और चमकदार होना चाहिए। यह सिर्फ भौतिक मजबूती का प्रतीक नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक मजबूती का भी प्रतीक है।