देवरिया न्यूज़

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गाजा युद्ध ने छीनी बच्चों की मासूमियत, सदमे में घाव और दर्द छिपाना सीख गए

देवरिया। बच्चों का मन बेहद कोमल होता है। उनके दिल और दिमाग पर किसी भी अच्छी या बुरी चीजों का बहुत जल्दी असर होता है। अगर कोई बच्चा बचपन में ही किसी अनहोनी घटना का शिकार होता है या उसे घटते देख लेता है तो उसका असर उसकी पूरी उम्र रहता है। गाजा में पिछले 7 महीनों से हो रही बमबारी से सिर्फ जान माल का नुकसान नहीं हो रहा, बल्की उन सभी मासूम बच्चों की मासूमियत, बचपन और संवेदनशीलता भी हमेशा के लिए ध्वस्त हो चुकी है, जिनके सामने रोजाना उनके अपने दमतोड़ रहे हैं, रोजाना उनके सामने उनके हमउम्र भाई-दोस्त लहूलुहान नजर आ रहे हैं। इन परिस्थितियों में बच्चे समय से पहले परिपक्व व्यवहार कर रहे हैं।

दर्द छिपा रहे मासूम बच्चे

लंबे समय से आसपास के माहौल ने इनके दिमाग पर इतना गहरा असर किया है कि बमबारी के बीच जी रहे गाजा के बच्चों का व्यवहार बदल गया है। वे अपने दर्द छिपा रहे हैं। खुद को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए अपने दर्द के बार में दूसरों से झूठ बोल रहे हैं। गाजा के अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों के मन पर ऐसा आघात लगा है कि वे अपने शारीरिक दर्द को ज्यादा महसूस नहीं कर पा रहे। अपने घाव को भी छिपा रहे हैं।

“सदमे से चोट की शिकायत भी नहीं कर रहे बच्चे”

ब्रिटेन की आर्मी में रहे बच्चों के डॉक्टर बताते हैं- “बच्चे अपनी चोटों और घावों की शिकायत नहीं कर रहे। उन्हें लगता है कि उन्हें मजबूत बनना होगा। इसलिए वे अब किसी चीज की शिकायत नहीं कर रहे। यहां तक कि वे अब आम दिनों की तरह रो भी नहीं रहे हैं। अपने जानने वालों और परिवार के लोगों का अपने सामने इलाज होते और उन्हें मरते देखकर वे सदमे में चले गए हैं। उन्हें अपना दर्द कम लगने लगा है। ऐसे बच्चों के इलाज और देखभाल के लिए अलग से मैन्यूल तैयार किया जा रहा है। अंग्रेजी और अरबी में यह मैन्यूल वर्ल्ड इन्नोवेशन समिट फॉर हेल्थ (विश) के सहयोग से तैयार किया जा रहा है।

हर हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में बदला बच्चों का व्यवहार

कतर की राजधानी दोहा में आयोजित कॉन्फ्रेंस में इकट्ठा हुए पिडियाट्रिशियन का कहना है कि सिर्फ गाजा में ही नहीं, बच्चों के व्यवहार में ऐसे बदलाव लगभग हर हिंसाग्रस्त क्षेत्र में नजर आ रहे हैं। यूक्रेन, यमन सिरिया में भी ऐसे ही हालात हैं। इस वक्त दुनिया का हर छठा बच्चा हिंसाग्रस्त इलाकों में रह रहा है। इससे उसे मानसिक आघात लगा है। बच्चों के व्यवहार बदलने से डॉक्टर को उनका दर्द समझने में समस्या आ रही है। वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि किस बच्चे को पेनकिलर का कितना डोज दें। इसकी वजह से घायल बच्चों को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है।

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