देवरिया। नवरात्र से ही त्योहारों का दौर शुरू हो चुका है। अब 5 दिन का पर्व दीपावली मनाई जा रही है। दीपावली से एक दिन पहले रूप चौदस मनाया जाता है, जिसे नरक चौदस भी कहा जाता है। इस दिन अलग-अलग स्थानों में यमराज, श्री कृष्ण, मां काली, शिव, हनुमान जी और विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। कहा जाता है इस दिन यमदेव की पूजा करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है और पापों से भी मुक्ति मिलती है।
रूप चौदस या नरक चतुर्दशी का महत्व
पांच दिनों की दीपावली के एक दिन पहले हम रूप चौदस के रूप में मनाते हैं उस दिन तिल के तेल और तिल के उबटन से स्नान किया जाता है। मान्यता है कि इससे श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और भगवान हमें रूप और सौन्दर्य का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इसलिए तिल के उबटन से नहाने पर नरक से भी मुक्ति मिलने की बात शास्त्रों में कही गई है।

शाम को जलाए जाते हैं 14 दिए
नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन शाम को घर के बाहर चौक बनाकर उस पर कच्ची मिट्टी या आटे के 14 दिए प्रज्ज्वलित किए जाते हैं और धूप-दीप, फूल से पूजा की जाती है। एक दिया अलग से यम देव के नाम से घर के बाहर रखा जाता है। यह पूजा यम देव के प्रति हमारी आस्था का प्रतीक माना जाता है।
बंगाल में की जाती है काली पूजा
बंगाल में नरक चतुर्दशी मां काली के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। काली मां की पूजा की जाती है। इसलिए बंगाल में इसे काली चौदस कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन काली की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

नरक चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक माह की चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के दुष्ट राक्षस का अंत किया था। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को कैद करके रखा था। कृष्ण ने उन सभी कन्याओं को नरकासुर के कैद से मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में सभी ने अपने-अपने घरों को दिए से सजाया था।

रूप चतुर्दशी के पीछे की कथा
हिरण्यगर्भ नाम का एक राजा था। उसने राज-पाठ छोड़कर तपस्या शुरू की और उसी में अपना जीवन बिताने की ठान ली। राजा ने कई सालों तक एक ही स्थान पर बैठे-बैठे तपस्या की, जिससे उनके शरीर पर कीड़े लग गए और पूरा शरीर खराब होने लगा। यह देखकर हिरण्यगर्भ घबरा गया और नारद मुनि से अपना दुख बांटा। तब देवऋषि नारद ने उनसे कहा कि योग साधना के दौरान आपने शरीर की स्थिती सही नहीं रखी। इसलिए ऐसा परिणाम देखने को मिल रहा है। उन्होंने राजा से कहा अपने शरीर को पहले जैसी स्थिति में लाने के लिए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्योदय से पहले उठना और शरीर पर उपटन लगाकर स्नान करना और रूप सौन्दर्य के देवता श्री कृष्ण से अपने शरीर को पहले जैसा करने के लिए प्रार्थना करना। राजा ने वैसा ही किया और उन्हें उनका पहले वाला शरीर वापस मिल गया। श्री कृष्ण की आराधना से राजा को कीड़े लगे शरीर से मुक्त मिली और उन्होंने पहले जैसा रूप पाया। इसलिए इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।