देवरिया। लोग कहते हैं, पेपर्स पर भी लिखा है कि वो दिव्यांग हैं। लेकिन एक बार उनका हौसला देखिए, एक बार उनकी हिम्मत देखिए, एक बार उनकी मेहनत देखिए और एक बार उनकी सफलता देखिए सारी उदासी भूल जाएंगे। हम बात कर रहे हैं शीतल देवी की। शीतल देवी जिनके फैन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हो गए और सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। वो शीतल देवी जिनके नाम से जम्मू-कश्मीर का नाम रोशन हो गया। 17 साल की उम्र में शीतल को अर्जुन पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। एक दुर्लभ बीमारी के साथ पैदा हुई शीतल ने अपनी कमी को ही अपनी खूबी बना लिया है और आज लाखों लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं। आइए जानते हैं शीतल की प्रेरणा से भरी कहानी।
एशियाई पैरा टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाली शीतल देवी ने खेलो इंडिया एनटीपीसी राष्ट्रीय रैंकिंग तीरंदाजी प्रतियोगिता में शीतल ने सामान्य और पूर्ण रूप से सक्षम खिलाड़ियों के बीच प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर रजत पदक जीता है। शीतल, विश्व चैंपियन एकता रानी के बाद दूसरे स्थान पर रहीं। शीतल व्यक्तिगत कंपाउंड स्पर्धा के फाइनल में एकता से 138-140 से हार गईं।
शीतल को जन्म से ही फोकोमेलिया
शीतल देवी को जन्म से ही फोकोमेलिया नामक बीमारी थी। यह एक दुर्लभ बीमारी होती है जिसकी वजह से गर्भ में बच्चे के अंग ठीक तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं। कहते हैं कि भगवान अगर हमें किसी एक तरह की शारीरिक कमी दे देता है तो दूसरे अंगों को इतना मजबूत बना देता है कि उसकी कमी पूरा कर देता है। उसी तरह शीतल के हाथ नहीं हैं लेकिन उसके शरीर का उपरी हिस्सा इतना मजबूत है कि वह बचपन से ही बिना हाथों के ही पेड़ों पर चढ़ जाया करती थी। ट्रेनिंग से पहले उनका फिजिकल एबिलिटी का टेस्ट किया गया था जिसमें कमर के ऊपर के अंग काफी मजबूत पाए गए थे। जिसके आधार पर फिजियोथैरेपिस्ट ने तीरंदाजी, तैराकी या दौड़ का विकल्प दिया था।
सेना के अधिकारी ने परखा शीतल का हुनर
शीतल देवी जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के एक छोटे से गांव लोई धार की रहने वली हैं। कुछ साल पहले ही सेना के एक अधिकारी ने कटरा स्थित माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी के कोच कुलदीप वेदवान को शीतल के बारे में बताया। कुलदीप ने शीतल के अंदर का जुनून देखा और वहीं से वो शीतल के गुरु बन गए। उनके लिए विशेष धनुष तैयार कराया गया, जिसे हाथ से नहीं बल्कि पैर और छाती से चलाया जाता है। अपनी लगन और मेहनत से छह माह के अंदर शीतल ने इसमें महारत हासिल कर ली बिना हाथों वाली दुनिया की पहली तीरंदाज बन गई।
साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है शीतल
शीतल एक बहुत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके परिवार में उनके दो भाई और माता पिता हैं। परिवार का भरण पोषण करने के लिए उनके पिता को पूरे दिन मेहनत मजदूरी करनी पड़ती है। शीतल कहती हैं मेरी कमी के बावजूद मेरे माता पिता ने हमेशा मुझपर भरोसा किया। शीतल अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने माता पिता और अपने कोच को देती हैं। उनका कहना है कि माता पिता ने मुझपर भरोसा कर मुझे इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका दिया और मेरे कोच ने मुझमें आत्मविश्वास जगाकर इस मुकाम तक पहुंचाया है। हाथ नहीं होने के बाद भी शीतल ने एक ऐसी राह चुनी जिसमें दोनों हाथों का ससे ज्यादा उपयोग होता है। शीतल साबित कर दिया कि इंसान के अंदर चाह और पाने की लगन होनी चाहिए, फिर किसी भी प्रकार की अपंगता उसके आड़े नहीं आ सकती।
खुद को ओलंपिक के लिए तैयार कर रही हैं शीतल
शीतल खुद को ओलंपिक के लिए तैयार कर रही हैं। उन्होंने खेलो इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लेने को लेकर कहा कि- “उनके प्रदर्शन से उन्हें आगे की चुनौतियों के लिए तैयार होने में मदद मिलेगी। इस परिणाम से मुझे अंतरराष्ट्रीय मंचों और ओलंपिक में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।”
