देवरिया। 296 लोगों की आबादी वाले आदिवासी गांव पानीझोड़ा के हर घर में लाइब्रेरी (every house has a library) है। आदिवासियों के इस गांव में पढ़ाई को तरक्की की पहली सीढ़ी माना जाता है। लोग आपस में किताबें भी गिफ्ट करते हैं। एक-दूसरे से किताबों की अदला-बदली भी करते हैं। दरअसल ये गांव आदिवासियों से ज्यादा किताबों का घर बन गया है। इस गांव में पहले कोई अखबार तक नहीं पढ़ता था, लेकिन अब हर घर में किताबों की भरमार है। गांव के हर घर की दीवार पर शिक्षामूलक कविताएं, पहेली और फोटो लगी हुई हैं। यहां लाइब्रेरी में किस्सों, कहानियों के अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं की भी किताबें हैं जो काफी उपयोगी हैं। हम दोबारा यहां आयेंगे।’
यह गांव पश्चिम बंगाल के अलीपुरदुआर जिले के राजाभातखावा ग्राम पंचायत में है। यह पश्चिम बंगाल का पहला बुक विलेज (First book village of West bengal) है। यह बुक विलेज अब एजुकेशनल टूरिस्ट हब बनता जा रहा है। इस गांव में राभा, मुंडा, राजबंशी, ओरांव जनजाति के लोग रहते हैं। यहां लगभग रोज ही कोई न कोई स्कूल अपने छात्रों को ट्रिप पर लाता है। पर्यटकों के लिए भी ये गांव आकर्षण का केंद्र बन गया है।
शिक्षक ने बदली गांव की तस्वीर
गांव में यह बदलाव पानीझोड़ा प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर अभिषेक बंद्योपाध्याय और उनके मित्र व शिक्षक डॉ पार्थ साहा लेकर आए हैं। दिसंबर में इस गांव में एजुकेशनल टूर (educational tour in book village) के लिए कई स्कूल के बच्चे आए थे। यहां जिले के फालाकाटा ब्लॉक स्थित जटेश्वर गर्ल्स हाई स्कूल से 35 छात्राओं का दल आया था।
टीचर्स डे पर छात्राओं को तोहफा देने के लिए अलीपुरदुआर जिले के न्यूटाउन गर्ल्स स्कूल इस गांव पहुंचा था। स्कूल की असिस्टेंट टीचर मौसुमी कर कहती हैं- आजकल बच्चे जहां मोबाइल एडिक्ट हो गए हैं ऐसे में एक गांव में इस तरह का नजारा बेहद ही अलग अनुभव पैदा कर रहा था। यहां की महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। आर्थिक दृष्टि से मजबूत होने से शिक्षा की तरफ और ज्यादा झुकाव होता है। हमारी छात्राओं को यहां की सभ्यता, संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिला।’

अशिक्षित गांव बुक विलेज में तब्दील करने की कहानी
हेड मास्टर अभिषेक बंद्योपाध्याय कहते हैं- कोरोना के बाद गांव में ड्रॉप आउट छात्रों की संख्या बढ़ गई थी। दरअसल, परिवार वालों ने घर चलाने के लिए बच्चों को स्कूल से निकालकर मजदूरी में लगा दिया था। इतना ही नहीं इस गांव में आज से पहले तक अखबार तक नहीं मिलता था, जिससे यहां के बच्चे बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ थे। तब मैं और पास के ही गांव दमनपुर स्कूल के शिक्षक डॉ. पार्थ साहा ने रैक लाइब्रेरी, सेंट्रल लाइब्रेरी और फिर मिनी होम लाइब्रेरी बनाई। यहां की आधी से अधिक आबादी फर्स्ट जेनरेशन लर्नर हैं। इसमें पार्थ के आपनकथा नाम की एनजीओ और अलीपुरदुआर की डीएम आर विमला सहित प्रशासन ने काफी मदद की।
10 घरों के बाहर 10 मिनी लाइब्रेरी भी बनाई है
अभिषेक आगे बताते हैं, ‘हमने 10 मिनी लाइब्रेरी 10 घरों के बाहर तैयार की है। ये एक थीम लाइब्रेरी है, जहां डुअर्स की लोकसंस्कृति, इतिहास से संबंधित किताबें, बक्सा फोर्ट का इतिहास यानी उत्तर बंगाल की किताब, भूत, विज्ञान सहित कई तरह के विषयों पर किताबें रखी गई हैं। यहां से गुजरने वाला कोई भी उन किताबों को पढ़ सकता है।’
गांव के बच्चे कर रहे बुक विलेज (book village) की देखरेख
बुक विलेज को बेहतर बनाये रखने में गांव के बच्चे ही मदद करते हैं। कक्षा 7 से लेकर एमएससी के 25 छात्र स्वेच्छा से सामने आए हैं, जिन पर इन किताबों को मैनेज करने का दायित्व सौंपा गया है। अलीपुरदुआर यूनिवर्सिटी के एमएससी के छात्र समीर टोपो कहते हैं, ‘हम 25 छात्र हैं और सभी का काम बांट दिया गया है। हम देखते हैं कि सभी को किताबें मिल रही हैं या नहीं। इसके अलावा गांव में फूलों के पौधे लगाने से लेकर साफ- सफाई का का सारा काम हम सब देखते हैं। कहीं पर कोई गंदगी न रहे, इसका खास ध्यान हम रखते हैं।
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