देवरिया न्यूज़

क्या है नासा और इसरों का संयुक्त मिशन NISAR?

देवरिया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार शाम एक बहुत ही महत्वपूर्ण सैटेलाइट को लॉन्च किया। यह दुनिया का सबसे महंगा सिविलयन अर्थ इमेजिंग (nisar satellite) सैटेलाइट है, इसका नाम NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) है। नासा और इसरों के संयुक्त मिशन को डेवलप करने में लगभग 15 साल लगे हैं और यह पहली बार है जब इसरो और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मिलकर किसी सैटेलाइट का निर्माण किया है। NISAR मिशन को अंतरिक्ष में भेजे जाने से भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष क्षेत्र में साझेदारी की एक नई शुरुआत होगी।

क्या है मिशन Nisar Satellite?

NISAR सैटेलाइट को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा, जहां से यह पृथ्वी के हर हिस्से की निगरानी कर सकेगा। यह मिशन दोनों एजेंसियों के बीच सालों की तकनीकी साझेदारी और साइंटिस्ट्स के सहयोग का नतीजा है। सैटेलाइट का वजन लगभग 2,393 किलोग्राम और लंबाई 51.7 मीटर है। इसे GSLV-F16 रॉकेट की मदद से बुधवार शाम 5 बजकर 40 मिनट पर लॉन्च किया गया। इसकी उल्टी गिनती 29 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 10 बजे शुरू हो गई थी।

मिशन को चार चरणों में पूरा किया जाएगा

  1. लॉन्चिंग
  2. अंतरिक्ष में सैटेलाइटकी तैनाती
  3. कमीशनिंग (ऑपरेशनल टेस्टिंग)
  4. वैज्ञानिक अध्ययन का चरण

क्यों खास है NISAR मिशन?

हालांकि इसरो पहले भी अर्थ ऑब्जर्वेशन के लिए सैटेलाइट भेज चुका है जैसे रिसोर्स सैट, रीसैट। लेकिन वे ज्यादातर भारत तक सीमित थे।
(nisar satellite) NISAR का उद्देश्य पूरी पृथ्वी पर नजर रखना है, जिससे यह ग्लोबली हर साइंटिस्ट के लिए उपयोगी हो। इसके जरिए जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियर्स की स्थिति, वनों की दशा, पहाड़ों में बदलाव, और ध्रुवीय क्षेत्रों की निगरानी जैसे विशेष विषयों पर डेटा मिलेगा।

इतना ही नहीं यह सैटेलाइट (nisar satellite) प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी और उनके पूर्वानुमान में भी सहायक होगा। यह मिशन भारत और अमेरिका दोनों के वैज्ञानिकों के साझा हित वाले क्षेत्रों जैसे भू-पारिस्थितिकी, समुद्री परिस्थितियों और बर्फ की स्थिति की स्टडी के लिए भी अहम साबित होगा।

क्या फायदे होंगे NISAR से?

इस सैटेलाइटको
(nisar satellite) 8 से 10 साल तक ऑपरेशन में रहने के लिए डिज़ाइन किया गया है। नासा ने इसमें इस्तेमाल किए गए L-बैंड रडार की जांच की है, जबकि इसरो ने S-बैंड रडार को तैयार और परीक्षण किया। सैटेलाइट में इस्तेमाल की गई SweepSAR तकनीक पृथ्वी की हाई-रेजोल्यूशन तस्वीरें लेने में सक्षम है। यह हर 12 दिन में ध्रुवीय इलाकों की तस्वीरें लेगा।

90 दिन बाद ऑपरेशन में आएगा सैटेलाइट

लॉन्च के बाद पहले 90 दिन सैटेलाइटकी स्थिति और कामकाज की जांच की जाएगी। इसके बाद यह पूरी तरह से ऑपरेशन में आ जाएगा। सैटेलाइट से मिली जानकारी और तस्वीरों को भारत और अमेरिका दोनों एजेंसियों द्वारा डाउनलोड किया जाएगा और जरूरत पड़ने पर दूसरे रिसर्च इंस्टीट्यूट्स को भी उपलब्ध कराया जाएगा।

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