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Janamastami 2025: इन जगहों पर अनूठे तरीके से मनाई जाती है जन्माष्टमी

देवरिया। भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव कृष्ण भक्तों के लिए एक बड़ा त्योहार होता है। इस बार (janmashtami 2025)कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को पड़ने वाली है। देश भर में कृष्ण जन्म का उत्सव काफी धूमधाम से मनाया जाता है। हर राज्य में कान्या के जन्म को अपनी-अपनी संस्कृति की परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। कुछ जगहों पर जन्माष्टमी से महीनों पहले ही तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। वहीं कुछ मंदिरों और राज्यों में जन्माष्टमी मनानी की अनोखी परंपरा है । आइए जानते हैं उनमें से कुछ ऐसी ही अनोखी परंपराओं के बारे में जो देश में जन्माष्ट्मी के विविध स्वरूप को दर्शाती है।

 राजस्थान का कानूड़ा उत्सव

राजस्थान में सिरोही नाम का एक छोटा सा गांव है, वहां कृष्ण जन्माष्टमी (janmashtami 2025) का त्योहार कानूड़ा उत्सव के नाम से मनाया जाता है। यहां पर जन्माष्टमी एक दिन की नहीं बल्की पूरे 10 दिन की होती है। जन्माष्टमी से एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथी को गांव की महिलाएं गांव की नदी जाती हैं और नदी की मिट्टी घार लाती हैं। फिर इसी मिट्टी से बाल गोपाल की मूर्ति बनाई जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन इसी मूर्ति की पूजा होती है और फिर 10 दिनों के लिए मूर्ति को घर पर ही रखा जाता है। इस दौरान इसे अपने आसपास के रिश्तेदारों के घार भी घुमाया जाता है। 10 दिन पूरे होने पर पूरे  विधि-विधान से मूर्ति को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

उडुप्पी में छिद्रों से दर्शन देते हैं श्री कृष्ण

कर्नाटक के उडुप्पी में स्थित श्री कृष्ण मंदिर अपनी अनोखी दर्शन पद्धति के लिए प्रसिद्ध है। यहां भक्त भगवान कृष्ण के दर्शन मंदिर में बने 9 छोटे-छोटे छिद्रों से करते हैं। जन्माष्टमी (janmashtami 2025) के अवसर पर इस मंदिर को सुंदर फूलों से भव्य रूप से सजाया जाता है। उडुप्पी में यह पर्व प्रमुख त्योहारों में से एक है, और इस दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। उडुप्पी को ‘दक्षिण मथुरा’ के नाम से भी जाना जाता है। जन्माष्टमी की शुरुआत शुभ मुहूर्त में ‘अर्घ्य प्रधाना’ विधि से होती है, जिसमें भगवान को दूध और पानी से स्नान कराया जाता है। इस दिन कृष्ण लीलोत्सव का आयोजन होता है और अंत में ‘मोसारू कुडिके’ की रस्म निभाई जाती है, जो दही-हांडी जैसी पारंपरिक प्रथा है।

21 तोपो की सलामी लेते हैं कृष्ण

उदयपुर से लगभग 48 किलोमीटर (janmashtami 2025)दूर नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर भगवान कृष्ण के एक स्वरूप को समर्पित है। यहां विराजमान श्री कृष्ण की मूर्ति 7 वर्ष के बाल रूप में है। पूरे देश में प्रसिद्ध इस मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। विशेष अवसर पर भगवान श्रीनाथ को 21 तोपों और बंदूकों की सलामी दी जाती है। इस अनोखे आयोजन को देखने के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र सहित देशभर से बड़ी संख्या में भक्त नाथद्वारा पहुंचते हैं।

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