देवरिया। भारत को अपने 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) मिल गए हैं। बुधवार को न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का कार्यभार संभाला। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत कई विशिष्ट गणमान्यजन मौजूद रहे।
CJI संजीव खन्ना की ली जगह
पूर्व CJI संजीव खन्ना की सेवानिवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति गवई ने यह पदभार ग्रहण किया है। गौरतलब है कि 30 जून को कानून मंत्रालय ने गवई की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। परंपरा के अनुसार, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया जाता है गवई वरिष्ठता क्रम में सबसे आगे थे।
कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं गवई
न्यायमूर्ति गवई की वकालत की शुरुआत 16 मार्च 1985 को हुई थी। वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील रहे हैं। 1992 से 1993 तक उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में भी जिम्मेदारी संभाली है। 17 जनवरी 2000 को वे सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त हुए। 14 नवंबर 2003 को उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया और 12 नवंबर 2005 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए।
24 मई 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई संवैधानिक पीठों का हिस्सा बनकर ऐतिहासिक निर्णय दिए। दिसंबर 2023 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के निर्णय का समर्थन करते हुए पांच सदस्यीय पीठ में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया।
दो राज्यों के राज्यपाल रह चुके हैं CJI के पिता
CJI गवई, सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता दिवंगत आरएस गवई एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थे। वो दो राज्यों, बिहार और केरल के राज्यपाल भी रह चुके हैं। जस्टिस गवई देश के दूसरे अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं। इससे पहले 2010 में जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन ने यह गौरव हासिल किया था। भारत के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस गवई का शपथ ग्रहण ना सिर्फ देश की न्यायपालिका के लिए ऐतिहासिक पल रहा, बल्कि यह सामाजिक समावेशन की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।