देवरिया : हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है। इस बार जगन्नाथ यात्रा एक जुलाई को निकाली जाएगी। यह यात्रा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई देशों में भी निकाली जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा माई के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। यदि आप भी भगवान जगरनाथ रथ यात्रा में शामिल होना चाहते है, तो उससे जुड़ी कुछ रोचक बातें जरूर जान लें।
- हर साल प्राथमिक पुजारी के द्वारा आवश्यक निर्देशों का पालन करते हुए पेड़ों के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल करके नए सिरे से रथ का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक रथ में आगे की ओर लकड़ी के चार घोड़े लगे होते हैं। भगवान के लिए ये रथ सिर्फ श्रीमंदिर के बढ़ई द्वारा ही बनाए जाते हैं। ये भोई सेवायत कहे जाते हैं। यह घटना हर साल दोहराई जाती है, इसलिए इसका नाम रथ यात्रा पड़ा।
- भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा देवी मंदिर के तीन देवता तीन अलग अलग रथों पर यात्रा करते हैं। नंदीघोष 18 पहियों के साथ, तलध्वज 16 पहिया पर और देवदलन 14 पहियों पर।
- बलराम के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं। जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘पद्म रथ’ या ‘दर्पदलन’ कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘नंदीघोष’ कहते हैं, जो कि लाल और पीला होता है।
- सभी रथ नीम की लकड़ियों से तैयार किए जाते हैं। जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए जगन्नाथ मंदिर में एक खास समिति का निर्माण किया जाता है। रथ के निर्माण के लिए किसी भी प्रकार की कील, कांटे या अन्य धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
- रथ यात्रा शुरू होने से 1 सप्ताह पहले पूरी मंदिर का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है, कि इस दौरान भगवान को तेज बुखार लगा होता है और उन्हें 1 सप्ताह आराम की जरूरत होती है। जब वह ठीक हो जाते है, तभी यात्रा निकाली जाती हैं।
- रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलरामजी और सुभद्रा सात दिन विश्राम करते हैं।
- गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
- आषाढ़ मास के दसवें दिन सभी रथ फिर से मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
- पुरी में भगवान को भोग लगाने के लिए सात बर्तनों यानी एक बर्तन के ऊपर एक रखकर खाना बनाया जाता है। आश्चर्य की बात यह है, कि सबसे ऊपर वाला खाना पहले पक जाता है। बाकी बाद में।
- जगन्नाथ मंदिर में झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में ही उड़ता रहता है। इस मंदिर में धातु से बना सुदर्शन चक्र एक टन का है। किसी भी दिशा से खड़े रहे तो चक्र हमेशा सीधा ही खड़ा दिखाई देता है। जगन्नाथ मंदिर के गुंबज के ऊपर एक पक्षी भी पर नहीं मारता है।