देवरिया। डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगों का नया हथियार बन गया है। इसके माध्यम से लोगों को अवैध गतिविधियों में शामिल होने की बात से भयभीत किया जाता है तथा इन गतिविधियों से बाहर निकलवाने के नाम पर उनसे ठगी की जाती है। स्कैमर्स कॉल द्वारा या मैसेज द्वारा या वीडियो कॉल से लोगों को ब्लैकमेल करते हैं। इस दौरान व्यक्ति को किसी से बात करने मिलने अथवा बाहर जाने के लिए इजाजत नहीं देते हैं। स्कैमर्स लोगों के साथ ठगी करने के लिए खुद को सरकारी अधिकारियों के रूप में उनके सामने प्रस्तुत करते हैं ताकि लोगों को यह लगे कि यह सरकारी अफसर हैं। वास्तव में ये सब अधिकारी नकली होते है पर लोगों को असली दिखने के लिए पुलिस की वर्दी में तथा सरकारी अधिकारियों जैसे ऑफिस में बैठते है ताकि किसी को शक न हो।
डिजिटल अरेस्ट पर नहीं है कोई प्रावधान
भारत में डिजिटल गिरफ्तारी को लेकर अभी तक कोई भी प्रावधान नहीं है। साइबर ठग अब पढ़े-लिखे लोगों को अपने भावनात्मक और फर्जी आधिकारिक जाल में फंसा कर उनके जीवन भर की गाड़ी कमाई को एक झटके में लूट ले रहे हैं। अपराधी पीड़ित को गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्हें जुर्माना देने के लिए दबाव डालते हैं। ज्यादातर ठगी दूसरे देश म्यांमार कंबोडिया आदि से की जा रही है तथा भारत के अंदर यह कुछ कुछ शहरी और अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है। क्योंकि साइबर अपराध को पकड़ने के लिए इतनी तकनीक विकसित नहीं है इसलिए यह बिना किसी डर के ऐसा कर रहे हैं।
सामने आ रहे हाई प्रोफाइल मामले
बीते दोनों नोएडा में एक ऐसा ही मामला देखने को मिला है जिसमें स्कैमर्स ने महिला को उसके घर में ही बंधक बनाकर उसके बैंक खाते से 5.20 लाख रुपए ठग लिए। देश के मशहूर बिजनेसमैन वर्धमान ग्रुप के अध्यक्ष एस.पी.ओसवाल से डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से 7 करोड़ रुपए की ठगी की गई।देश में 120 करोड़ रूपये की धोखाधड़ी डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से हो चुकी है। स्कैमर्स ने खुद को सीबीआई का अधिकारी बताकर ठगी की। हालांकि लुधियाना पुलिस ने इन नकली सीबीआई ठगों को असम के गुवाहाटी से गिरफ्तार कर लिया। यह अपराधी आपस में कभी मिले नहीं है सिर्फ ऑनलाइन जुड़े हुए हैं।
पीएम मोदी ने मन की बात में किया था जिक्र
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी डिजिटल अरेस्ट पर अपने 115वें मन की बात में इसकी चर्चा की थी।सरकार ने डिजिटल गिरफ़्तारी के बढ़ते मामलों को गंभीरता से लिया है और इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें साइबर अपराध से निपटने के लिए विशेष पुलिस बल का गठन, साइबर सुरक्षा जागरूकता अभियान चलाना, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाना शामिल है। गृह मंत्रालय में डिजिटल गिरफ्तारी से बचाव के लिए एक टीम गठित की है गृह मंत्रालय आंतरिक सुरक्षा सेक्रेटरी इस कमेटी को मॉनिटर कर रहे हैं।
इसके लिए स्पेशल कैंपेन चलाया जाएगा। गृह मंत्रालय के आई4सी विंग ने सभी राज्यों की पुलिस के साथ संपर्क किया है। डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं पर तत्काल कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल अरेस्ट के माध्यम से कोई कॉल आए तो ना डरने की सलाह दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल अरेस्ट से बचने के तीन स्टेप्स बताए हैं – रुको,सोचो और एक्शन लो।
हो सकती है गंभीर सजा
इस मामले में बहुत तरह की सजा हो सकती है। गलत डॉक्यूमेंट बनाने, लोगों से ठगी करने, सरकारी एजेंसी को गुमराह करने की सजा हो सकती है। इसके अलावा मनी लॉन्ड्रिंग हो रही है उसकी सजा, आईटी एक्ट के तहत सजा, ट्राई के कानून के तहत गलत सिम कार्ड लेने की सजा का प्रावधान है। हालांकि, इसमें दिक्कत यह है कि जो लोग पकड़े जाते हैं, वह निचले स्तर के प्यादे होते हैं और जो मुखिया होते हैं, वह विदेश में बैठे होते हैं। सरकारी एजेंसी उन्हें पकड़ नहीं पाती है।
जागरुकता है जरूरी
डिजिटल गिरफ़्तारी एक गंभीर साइबर अपराध है जो लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है और मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। इसलिए, हमें इस तरह के अपराधों से बचने के लिए सावधान रहना चाहिए और जागरूकता फैलाना चाहिए। डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए सर्वप्रथम लोगों को इसके बारे में जागरूक होना चाहिए। पुलिस कभी भी पैसे नहीं मांगती है अगर कोई पुलिस अधिकारी बनकर मामला सुलझाने के लिए पैसे मांगते हैं तो समझ जाइए कि वह ठग है।अगर कोई अधिकारी होने का दावा करता है और ऑनलाइन धमकी देता है, तो सतर्क रहें तथा हेल्पलाइन नंबर 1930 पर संपर्क करें।
अपना किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत विवरण जैसे आधार पैन और बैंक का कोई भी दस्तावेज किसी के साथ साझा ना करें। इस प्रकार की कॉल आने पर होने पर घबराएं नहीं, स्थिति को समझें अपने नजदीकी पुलिस विभाग को सूचित करें । जागरूकता द्वारा इस प्रकार की साइबर ठगी को रोका जा सकता है।
लेखक- करण कुमार मौर्य, विधि संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय