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बरसाने की लठमार होली से लेकर वृंदावन की फूलों की होली तक, देखिए कितने अनोखे तरीके से मनाया जाता है रंगों का त्योहार

देवरिया। रंगों का त्योहार होली अब बस कुछ ही दिनों में आने वाला है। रंग-बिरंगे गुलालों से खेला जाने वाला यह त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। जिस तरह होली में कई तरह के रंगों का उपयोग होता है उसी इस त्योहार के भी कई रंग है। पूर देश में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से होली मनाई जाती है। उनमे से मथुरा के बरसाने की लठमार होली, वृंदावन की फूलों की होली और काशी की मसाने होली सबसे अधिक प्रसिद्ध है। साथ ही देश के कुछ हिस्सों में होली का त्योहार काफी अनोखे तरीके से भी मनाया जाता है। आइए जानते हैं देश में किस-किस तरह से होली का त्योहार मनाया जाता है।

यहां चिता भस्म से खेली जाती है होली

काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन मसाने की होली खेली जाती हैमसाने की होली के पीछे की मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के ससुराल में गौने का कार्यक्रम होता है जिसमें ससुराल वालों के अनुरोध पर भूत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, औघड़ और अघोरियों को आमंत्रित नहीं किया जाता है। ये सभी नाराज ना हों इसलिए बाबा विश्वनाथ मणिकर्णिका घाट पर इनके साथ अगले दिन चिता भस्म की होली खेलते हैं। माना जाता है तब से बाबा विश्वनाथ हर साल भूत-पिशाचों के साथ यहां होली खेलने आते हैं।
मसाने की होली की परंपरा को 351 साल पुरानी मानी जाती है। पहले मसाने की होली संन्यासी और गृहस्थ दोनों मिलकर खेला करते थे, लेकिन बीच में किसी कारणवश इस परंपरा को बंद कर दिया गया था। अब लगभग 35 सालों से यह परंपरा फिर से निभाई जा रही है। मणिकर्णिका घाट और श्मशानेस्वर महादेव मंदिर के लोगों ने मिलकर इस परंपरा को दोबारा शुरू किया। मान्यता है कि इस दौरान भगवान शिव खुद अपने भक्तों को तारक मंत्र देते हैं।

बरसाने की लठमार होली

बरसाने की लठमार होली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्की पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां होली का त्योहार मनाने के लिए देश के साथ-साथ विदेश से भी लोग पहुंचते हैं। यहां की होली में होली खेलने के दौरान महिलाएं, पुरुषों पर लठ बरसाती हैं। इसे हुरंग कहते हैं। कहा जाता है इस दिन भगवान कृष्ण के गांव यानी नंद गांव के पुरुष राधा रानी के बरसाना स्थित मंदिर में झंडा लगाना चाहते हैं और महिलाएं उन्हें रोकने के लिए उन्हें लठ से मारती हैं। इस दौरान राधा-कृष्ण के बीच हुई बातचीत को लोकगीतों के माध्यम से गाया जात है।
वृंदावन की फूलों की होली
वृंदावन यानी भगवान श्री कृष्ण की नगरी में रंग-गुलाल की जगह फूलों की होली खेली जाती है। यहां की होली का आनंद लेने के लिए विदेशी पर्टयक भी बड़ी संख्या में वृंदावन पहुंचते हैं। यहां होली का उत्सव सिर्फ होली के दिन ही नहीं होता बल्की लगभग 15 दिन पहले ही होली का उत्साह शुरु हो जाता है। होली के दिन यहां हर एक बालक को कृष्ण और बालिकाओं को राधा रानी का रूप माना जाता है।

गोरखपुर की भस्म वाली होली

गोरखपुर में नाथ योगियों के द्वारा पूरे उमंग के साथ होली का त्योहार मनाया जाता है। सबसे पहले नाथ योगी, महादेव को प्रिय और बाबा गोरखनाथ को अर्पित भस्म से होली खेलते हैं उसके बाद ही रंगों की होली में शामिल होते हैं। होली के दिन सबसे पहले गोरखनाथ को भस्म लगाई जाती है। भस्म लाने के लिए साधु संत होलिका दहन वाले स्थान पर जाते हैं और तुरही, नागफनी, मजीरा आदि की ध्वनी और होली गीतों के साथ भस्म लेकर आते हैं। रही भस्म गुरु गोरखनाथ को अर्पित किया जाता हैं। इसी भस्म को गोरक्षपीठाधीश को भी तिलक किया जाता है और फिर साधु संत इससे ही होली खेलते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस होली में हर साल हिस्सा लेते हैं।

जहां होली सिर्फ महिलाएं खेलती हैं

अक्सर होली का त्योहार पुरुषों के द्वारा ज्यादा मनाया जाता है। होली के दिन सड़कों और गलियों में पुरुष ही ज्यादा देखने को मिलते हैं। महिलाएं हुड़द्गियों के डर से घर तक ही सीमित रहती हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक गांव हैं कुंडरा जहां होली सिर्फ महिलाएं ही खेला करती हैं। इस दिन गांव की सभी महिलाएं खुल कर होली खेलती हैं और हुड़दंग मचाती हैं।

अस्त्र-शस्त्र वाली होली

मेरठ से 12 किलोमीटर दूर बिजौली गांव में होली का त्योहार सुंओं और तलवारों के साथ मनाया जाता है। 200 साल प्राचीन इस परंपरा का अनुसरण करते हुए गांव ग्रामीण होलिका दहन की राख को अपने बदन पर लगाते हैं और धुलेड़ी वाले दिन तलवारों को पेट पर बांध कर मुंह में सुंओं से घाव करते हैं। इस अनोखी परंपरा को जिन्होने शुरू की थी उन बाबा की समाधि गांव में ही स्थित है। गांव वालों का मानना है कि यदि इस परंपरा को रोक दिया जाए तो गांव को किसी प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ सकता है।

होलिका की राख और मिट्टी से खेली जाने वाली होली

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में होलिका की राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। इस परंपरा के पीछे एक लोककथा प्रचलित है, कि एक बार बस्तर पर आक्रमण हुआ था और बस्तर की राजकुमारी के अपहरण की कोशिश हुई थी। तब राजकुमारी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए दंतेश्वरी मंदिर के सामने खुद को आग के हवाले कर दिया था। यहां होलिका दहन को राजकुमारी के आत्मदाह को याद करने के लिए मनाया जाता है। होली के दिन रंगों की जगह होलिका की राख और मिट्टी से होली खेली जाती है और राजकुमारी के अपहरण करने की कोशिश करने वालों को गालियां दी जाती हैं।

हरियाणा की डाट होली

हरियाणा के पानीपत जिले की ‘डाट होली’ होली खेलने की बहुत ही अनोखी परपरा है। 850 वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार यहां के लोग अपने हाथ ऊपर की ओर बांधकर एक दूसरे को धक्का देते हैं। डाट होली की तैयारी 15 दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं।

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